February 8, 2025

Ajayshri Times

सामाजिक सरोकारों की एक पहल

**विशेष जन विशेष*

 

पुस्तक समीक्षा :  शैलेंद्र जोशी

*विशेष जन विशेष एक अद्भुत कृति है जिनमे मजदूर से लेकर कैमरा , कलम, संगीत ,अध्यात्म , पत्रकारिता ,संपादन से जुड़ी शख्शियतों पर आलेख निबन्ध बहुत शास्त्रीय तरीके से लिखा है इस पुस्तक में रन्त रैबार और शिखर सन्देश मीडिया समूह के संपादक ईश्वरी प्रसाद उनियाल जी की पत्रकारिता और लोकभाषा सवंर्धन में उनके योगदान पर भी साहित्यकार नरेंद्र कठैत जी ने आलेख लिखा है वहीं हलन्त सम्पादक पत्रकार साहित्यकार शाक्त ध्यानी में विस्तार से लिखा है।या अपने संसाधनो में पत्र निकालने वाली सुलोचना पयाल हो । यह पुस्तक शोध करने वाले उच्च सभी संस्थान और पढ़ने लिखने वाले व्यक्तियों के लिए सहायक सिद्ध होगी उत्तराखंड दर्शन को समझने के लिए।* अपनी कैमरे से सुदूर पहाड़ों को विदेशों तक लोकप्रिय करने। वाले त्रिभुवन सिंह चौहान हो या पंजाब यूनिवर्सिटी का एक प्रोफेसर किस तरह गढ़वाल में आकर गोपाल बाबा बन जाता है जिसकी शायरी में गढ़वाल के दर्शन होने लगे हैं धीरे धीरे।
विशेष जन विशेष ऐसी पुस्तक है जिसमे विशुद्ध लोकगायक की प्रतिमा से हटकर गढवाली कविताओं और रंगदार धुनों में ढालने वाले गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी ने किस तरह साधरण आवाज और सीमित दायरों से अपनी मेहनत के दम में गढवाली भाषा में मानक छवि बन जाता है साथ ही उनके व्यक्तित्व की बारीकियों से लिखा गया साथ उनके काम सजाने वाली उषा नेगी का जिर्क आलेख में है साथही गढवाली मंच संचालन का शाब्दिक अर्थ बन चुके गणेश खुगशाल गणी से लेकर सब्बि धाणी देहरादून के गीतकार वीरेंद्र पंवार हो या गढवाली कवि सम्मेलन कवियों के बीच कवयित्रियों में एक पहचान बनानी वाली बीना बेंजवाल हो मंचीय उपक्रमों से गढ़वाली कला साहित्य संस्कृति का अध्य्यन और प्रदर्शन प्रदेसिक देश की सीमा लांघकर विदेशों तक पहुंचा। विभिन्न नामों पर आलेखों ऐसी प्रस्तुतियां साहित्यकार नरेंद्र कठैत कलम कर सकती है।* साथ ही समीक्षक और भूमिका लेखन में एक बड़ा नाम भगवती प्रसाद नौटियाल जी पर आलेख है तो कलावन्त बी मोहन नेगी पर भी आलेख है साथ ही साहित्यकार नरेंद्र कठैत पुस्तक में अपनी बात में लिखते भी हैं

नाखून बढ़ाने वाले, केश बढ़ाने वाले भी अपने-अपने क्षेत्र में विशेष हैं लेकिन इस जिल्द में वे विशेष नहीं मिलेंगे। जिम के कसरती वदन, टच बटन और पुश बटन सभ्यता के विशेष भी इस जिल्द में नहीं हैं। इस जिल्द में विशेष वे हैं जिनके हाथ में या तो कलम है, या कुदाल है, या उच्च कोटि की कला है या संस्कार हैं।

ये इसलिए विशेष हैं कि इनसे जुड़े तथ्य प्रेरणास्पद हैं। ये वे विशेष हैं जो नई पीढ़ी के नवयुवकों के भविष्य की राह तय करते हैं।

जिल्द की भले ही एक सीमा तय है। लेकिन ऐसा कदापि नहीं कि जो इस संग्रह में आ सके वे ही विशेष हैं – अब विशेष कोई शेष नहीं हैं। उन तक पहुंचने का प्रयास जारी है। इस पुस्तक की भूमिका लिखी हैजेएस विश्वविद्यालय, शिकोहाबाद के कुलपति प्रो. हरिमोहन जी ने इंडिया नेटबुक्स पब्लिशिंग हाऊस से प्रकाशित हुई है।*https://www.amazon.in/dp/B0BWJLPBX7?ref=myi_title_d

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