उत्तराखण्ड भाषा संस्थान सर्वभाषा कवि सम्मेलन से लगता है देहरादून में लेखक कवि रह गए हैं बस
उत्तराखण्ड भाषा संस्थान में उत्तराखंड से जुड़ी भाषाओं से अधिक राष्ट्रीय स्तरीय भाषा के कवियों भागीदारी दिखी और उत्तराखण्ड सभी लोकभाषा निमंत्रण मे समानता नही दिखी। हिंदी के चार उर्दू के दो पंजाबी के एक और दो दो कवि गढवाली कुमाउनी भाषा के रहे। लोकभाषा में कई नाम तो एक ही दिन कई जगह आमंत्रित हो तो वो मंच से नदारद दिखे जो लिस्ट में नही हैं नाम वो मंच में आनन फानन आमंत्रित किये गए हों। जौनसारी लोकभाषा तो सर्वभाषा सम्मेलन में दिखी नही, देहरादून में नेपाली भाषा पढ़ने बोलने वाला समाज भी है नेपाली भाषा भी नदारद दिखी। खैर भाषा कौन आमंत्रित हुई कौन हुई कौन नही इस विषय से ज्यादा गम्भीर बात ये लगी हिंदी भाषा से लेकर लोकभाषा के ज्यादातर कवि देहरादून आमंत्रित दिखे क्या भाषा लेखन में सिर्फ देहरादून में काम हो रहा जो ज्यादात्तर नाम देहरादून के आस पास के दिखे । स्थापना दिवस के अवसर सर्वभाषा कवि सम्मेलन उत्तराखण्ड प्रतिनिधित्व करता नही दिख रहा।
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