सुनील नेगी:
बहुमुुखी प्रतिभा के धनी, बेदाग छवि!
दिल्ली ! ये सन 1986-87 के आसपास की बात रही होगी। एक विदेशी बैंक के साउथ एशिया प्रभारी के समक्ष अपनी बात रखनी थी। लेकिन अंग्रेजी पर कमांड इतनी अच्छी नहीं थी कि उनके आगे सही ढ़ग से बात रखी जा सकती। एक मित्र से बात की। थोड़ा सोचकर उसने कहा – एक आदमी मेरे ध्यान में है देखते हैं मदद मिल सकती है या नहीं? मित्र ने अपने चैम्बर से ही उन्हें फोन मिलाया और उनके सामने मेरी बात रखी। उन्होंने ध्यानपूर्वक सुना और कहा- ‘ओके! कल भेज दीजिए!‘ मित्र ने आगे पूछा-‘भाई साहब कितने बजे?’ – उन्होेने जवाब दिया- ‘10 बजे बाद किसी भी समय!’ मित्र ने एक पर्ची में कुछ लिखा और मुझे थमाते हुए कहा- ‘भाई कल इनसे मिल लो।’
पर्ची पर निगाह डाली। लिखा था-
’सुनील नेगी, विशेष संवाददाता, विश्व मानव दैनिक, थर्ड फ्लोर, आई.एन.बिल्डिंग, रफी मार्ग।’
दूसरे दिन ठीक दस बजे आई.एन.एस. के तृतीय माले के विश्व मानव के कार्यालय में प्रविष्ट होते ही एक बड़ी सी टेबल के उस ओर दो कुर्सींयों में से एक कुर्सी पर बैठे सज्जन पर नजर टिकते ही पूछा- ‘जी सुनील नेगी…’
उन्होंने मेरा सवाल पूरा सुनने से पहले ही टेबल के दूसरे छोर की ओर इशारा करते हुआ जवाब दिया- ‘आप हैं!’
आप हैं सुनते ही दृष्टि उस ओर पड़ी और एक घड़ी उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को नापती चली गई-
करीब तीस पैंतीस साल की गौरवर्ण छरहरी काया, ट्रिम दाढ़ी, चमकदार आंखें, झक्क सफेद कमीज पर मैचिंग टाई, दोनो हाथों में दो अलग-अलग टेलीफोन रिसीवर। एक रिसीवर इस कान पर, तो दूसरा दूसरे कान तक पहुंचने को आतुर। उनके कार्य व्यापार को देखकर लगा कि उनकी व्यस्तता में खलल डालना उचित नहीं। लेकिन- इसी बीच अचानक उनकी दृष्टि पड़ी, मिलने को वक्त दिया था तो शायद उन्हें समझने में देर न लगी – और तुरन्त उसी व्यस्तता के बीच सामने बैठे सज्जन के पास वाली कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा -‘बैठिए प्लीज!’
उन सज्जन के पास वाली कुर्सी पर बैठते ही सामने टेबल पर रखी एक पत्रिका को पलटने लगा। लेकिन ध्यान आपकी ओर ही रहा। साफ स्पष्ट हिंदी और धाराप्रवाह अंग्रेजी सुनकर लगा कि मैंने सही जगह कदम रखा। लगभग दस मिनट बाद आपको उस व्यस्तता से कुछ राहत मिली। एक-एक कर दोनों रिसीवार यथा स्थान रखते हुए वे पहले से बैठे सज्जन की ओर मुखातिब हुए। उनसे चर्चा की। जाने से पूर्व वे सज्जन भाई साहब को अपने रचनाकर्म से सम्बंधित एक फाइल थमा गये। दरअसल उन्हे फाइल में अपना रचनाकर्म सौंपने वाले वे सज्जन कोई कार्टूनिस्ट थे। तत्पश्चात उन्होंने उक्त बैंक प्रभारी के समक्ष अंग्रेजी भाषा में विस्तारपूर्वक एंव संतुलित ढंग प्रकरण रखा।
हालांकि उक्त प्रकरण पर उस ओर से -‘नेगी जी काल मी डे आफ्टर टुमारो!, फिर नैक्स्ट वीक, और यूं वह तार टूटती चली गई। लेकिन सुनील भाई से जो एक बार सम्बन्ध बना उसकी घनिष्टता बढ़ती ही गई।
एक दिन पूछा- ‘भाई साहब माना कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है। हर कोई समझ भी लेता है और बोल भी। और- गढ़वाली तो आपकी मातृभाषा है ही । लेकिन आपने अंग्रेजी भाषा में इतनी मास्ट्री कैसे हासिल की?’ कहने लगे- ‘ मास्ट्री कहां है भई! मैं तो हिंदी में लिखता हूं। हां इतना अवश्य है कि अंग्रेजी का अखबार दर्जा दो से पढ़ना शुरू कर दिया था !’
हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर मजबूत पकड़ के साथ ही आपके पास सन 78-79 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की केन्द्रीय परिषद, 79-80 मोतीलाल नेहरू कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष, सिने स्टार राजेश खन्ना के राजनीतिक मीडिया एडवाइजर का अनुभव एंव विभिन्न सामाजिक सरोकारों से जुड़ी अनुभवों लम्बी फेहरिस्त है। यही कारण है कि आज भी दिल्ली के बीच सामाजिक, राजनीतिक सरोकारों से जुड़ी कोई ऐसी गतिविधि नहीं है जहां आपकी दमदार उपस्थिति नहीं रही है। आप उत्तराखण्ड आंदोलन के दौरान ही सक्रिय भूमिका में नहीं रहे बल्कि – आज भी उत्तराखण्ड की तमाम राजनीतिक, सामाजिक हलचलों पर आपकी पैनी नजर रहती है।
समय-समय पर आप ‘ब्लिट्ज’ के साथ ही नूतन सवेरा, विश्व मानव, दून दर्पण, गढ़ ऐना से भी जुड़े रहे। इस दौरान आपके असंख्य आलेख, साक्षात्कार पढ़ने को मिले। साथ ही आपकी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘हू इज हू’ के दो संस्करण तथा अनुदित पुस्तक ‘हेवक इन हेवन’ पाठकों के मध्य खूब चर्चित हैं।
एक दिन आपसे यूं ही पूछा- ‘आप इतनी लम्बी पत्रकारिता की पारी में किससे प्रभावित रहे?’ आपने उत्तर दिया- ‘राजनीति में हेमवती नंदन बहुगुणा और सामाजिक सरोकारों की दृष्टि से सुन्दरलाल बहुगुणा। सुन्दरलाल बहुगुणा जी के अंगे्रजी आलेख बचपन से पढ़ता था। अगे्रंजी भाषा पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी। चिपको आंदोलन को रैणी से विश्वभर तक पहुंचाने वाले सुन्दर लाल बहुगुणा ही थे। दरअसल वे एक आंदोलनकारी के साथ-साथ एक अच्छे लेखक भी रहे। उस समय देश के सभी मेन स्ट्रीम न्यूज पेपरों के ऐेडिटोरियल में उनके लेख छपते थे। पर्यावरण के प्रति सजगता में उनका बड़ी भूमिका रही। जहां तक राजेश खन्ना काका की बात है- वे एक बेहतरीन एक्टर तो थे ही लेकिन एक बेहतरीन इंसान भी थे। गरीबों, असहाय लोगों के लिए काका के दिल में बहुत बड़ी जगह देखी।’
निसंदेह!
हेमवती नन्दन बहुगुणा की राजनितिज्ञ, सुन्दर लाल बहुगुणा के सदृश्य उच्च कोटी के सामाजिक सरोकारों से जुड़े व्यक्ति एवं राजेश खन्ना काका की स्टारडम छवि को आपने बहुत करीब से देखी। लेकिन सुनील नेगी की छवि सदैव सुनील नेगी की ही रही। न कोई तड़क-भड़क, न विद्वता का घमंड, बेदाग छवि!
आपसे जुड़ा एक दौर वह भी देखा जब आपने मोबाइल रखना ही छोड़ दिया। जिससे की लम्बे समय तक आपसे सम्पर्क न हो सका। किंतु- एक दिन पौड़ी के भीड़ भाड़ भरे बस अड़डे के किनारे दूर खड़े एक आम आदमी पर दृष्टि पड़ी- एक क्षण लगा ये भाई सुनील नेगी हैं! फिर लगा नहीं नहीं ये वो नहीं हो सकते! आते तो खबर करते!’ इतना सोचकर कदम आगे बढ़ने वाले थे कि भाई दूर से ही मुस्करा कर बड़ी आत्मीयता से बोल पड़े-‘और क्या हाल हैं?’
ये जमीन से जुडे़ रहना उनकी महानता है – अन्यथा – कौन है जिसका वे हाल नहीं जानते हैं?
सामान्य वार्तालाप के दौरान आपकी इसी खूबी को आगे रखकर एक मर्तबा कहा- ‘भाई साहब आपका अनुभव कोष बड़ा है। नई पीढ़ी के पत्रकारों, सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए व्यक्तियों के लिए आप प्रेरणास्रोत हैं।’ कहने लगे- ‘अरे नहीं! ऐसा मैंने कभी सोचा ही नहीं है। बस जो किया है ईमानदारी से किया है।’ सुनकर लगा उदय प्रकाश ने भी यूं ही नहीं लिखा-
‘मैंने समुद्र की प्यास बुझाने के लिए
नहीं खोदा अपने घर के आंगन में कुआॅं
अघाये लोगों के लिए नहीं पकाई
खिचड़ी
कवियों के लिए
नहीं लिखीं कविता!
हम जानते हैं आपके व्यक्तित्व में अहम नाम का वहम दूर-दूर तक नहीं हैं। आप जितनी बेदाग छवि के हैं उतना ही बेबाक लिखते भी हैं। पुरस्कार सम्मानों की ओर आपने कभी हाथ नहीं बढ़ाये हैं लेकिन जो मिले हैं वे आपकी गरिमा के अनुकूल ही हैं।
परमेश्वर से प्रार्थना है कि आपकी बहुमुखी प्रतिभा आगे भी यूं ही जाज्वल्यमान रहे! आप शतायु जीएं!
आलेख नरेंद्र कठैत





Ese hi log chaheye uttrakhand devbhumi ko jo uttrakhand ka uddhar kar sake
I am grateful sir
Regards n gracious thanks
Sunil Negi
श्री सुनिल नेगी जी के ऊपर लिखे श्री नरेंद्र कठैत जी के आलेख से मै अक्षरश: सहमत हूं । मै प्रिय भाई सुनिल जी से विगत 4-5 वर्षों से परिचित हूं, परंतु उनकी व्यवहार कुशलता से लगता है कि न जाने हम एक दूसरे के सानिध्य में कितने जन्मों से है।
मै उनके अधिकतर लेख पढ़ने का प्रयास करता हूं पर नजर कम होने से कुछ ही पढ़ पाता हूं। पर पढने पर मैरी संतुष्टि की सीमा नहीं रहती।
हर क्षेत्र मे एक ही स्तर का दक्षता रखते है। समाज के हर संगठन में इनकी उत्तम छवि है। सब लोग इनकी बातों को गंभीरता से लेते है।
अहम नाम का वहम इन्हें छू भी नही सकता। बड़े बड़े वृत्तों में रहने के पश्चात भी धरातल से जुड़े है।
ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति को पाकर मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं।
प्उरिय सुनिल जी के ज्जवल भविष्य, स्वस्थ जीवन व उत्तरोत्तर यश वृद्धि की प्रभु से कामना करता हूं।
मेजर ओंकार उत्तराखंडी
सुनील नेगी जी पहाड़ की वो आवाज है जो बिना किसी स्वार्थ के समाज के सामने अकसर आ जाती है . जब भी समाज में मुझे काम करते समय समस्या आयी , या किसी माफिया ने धमका कर मुझे सत्य की राह से हटाने की कोशिश की तो सुनील नेगी जी ने अपने कलम की ऊर्जा से साथ दिया . उनकी सत्य को सूंघने की अपार शक्ति ने उन्हें एक प्रखर लेखक के रूप में स्थापित किया है . वह दिल्ली की कम उत्तराखंड की अधिक सुध बुध रखते हैं . पिथोरागढ़ के अस्कोट से लेकर उत्तरकाशी बडकोट तक केदारनाथ से लेकर रुद्रपुर अपनी दृष्टी बनाये रखने वाले ऐसे मेहनती पत्रकार सुनील जी हैं कि उत्तराखण्ड का कोई भी घटनाक्रम आपकी कलम से नहीं छूटता जबकि साधन सीमित हैं . ऐसे ही लोगों की बदौलत पहाड़ में मुझ जैसे बिना राजनैतिक संबंधों वालों सामाजिक कार्यकर्ता के लिए काम करना आसान होता है . सुनील जी की ऊर्जा बहुत प्रेरणा दायक है और उनका सच का साथ निभाने का ढंग नये लोगों के लिए एक प्रेरणा है. सुनील जी आप जीयें हजारों साल ….