November 29, 2023

Ajayshri Times

सामाजिक सरोकारों की एक पहल

सरस्वती वंदना/ कमलेश कमल


शब्द-साधना पथ का मैं
एक आश भरा अन्वेषी हूँ
सतत चलूँ इस पथ पर मैं
माँ, मुझ को आशीष दे।

सारी विद्या का कोश खरा
अमित ज्ञान का सिंधु धरा
हंस सा पग पाऊँ मैं
माँ, मुझको आशीष दे।

जगती के अक्षय पात्र तले
क्यों लूँ नाप अमिय-रस बोलो माँ
बन जाऊँ उसी की एक बूंद मैं
माँ, मुझको आशीष दे।

यश-कीर्ति की चाह नहीं
बस कोलाहल से थका हूँ मैं
हो जाऊँ वीणा सा झंकृत मैं
माँ, मुझको आशीष दे।

इस पथ पर चलते-चलते
जब मिलें अमर्ष के पंक मुझे
कमल सा खिल जाऊँ मैं
माँ, मुझको आशीष दे।

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