सच भी सांचो में सामाजिक मंथन
आजकल हम समाज में देखते हैं लोग साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों सामाजिक वातावरण बनाकर अपनी एक पहचान बनाते हैं फिर कुछ दिन बाद माइक पकड़ सोशल मीडिया लाइव चलाकर पत्रकार बन जाते हैं । पत्रकारिता औऱ समाज सेवा नया रूप निखर कर आया सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार भी राजनेताओं की पार्टी कार्यकर्ताओं जैसे दिखने लगते हैं आजकल । कभी जिन नेताओ विरोध में रहते फिर उनके पक्ष में खड़े हो जाते हैं । पर बाकी समाज इतने सच के आगे लगता है सच भी सांचो बंट गया अपने हिसाब से आजकल जिसको जो सच पसन्द उसको छांट लो सच सुनने की सुविधाएं बढ़ गयी है जिसको जो सच पसन्द है वो सुनो देखो। जितने नेता है उतने कार्यकर्ता भी हैं उतने सामाजिक चितंक जितने झंडे उतने माइक पकड़ पत्रकार भी हैं आजकल ।

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