*कहानी एक अम्मा की*
मायूस सा चेहरा लिए,
झुर्रियों का पहरा लिए,
एकांत मैं बैठी औरत,
जो परिवार से निकाल दी गई,
सोचो जरा कितना असहाय होगा हृदय उसका,
जो वेदना सिर्फ खुद तक ही रख पाई है,
इस ज़माने मे आज भी उसने
सिर्फ मेहनत की रोटी खाई है।
क्यू ना कहे की उसका ओहदा सबसे बड़ा है,
जिसने हर हार को खामोशी से सहा है।
उसकी हर वेदना उसे पल पल सताती है,
गम बहुत कम है तुम्हारा
मुझे बार बार बताती है।
आंखों के किसी कोने मे,
आसूंओं की सूखन का ढेर भी तन्हाई देता है
कितना बोझ होगा आखों में उसकी,
ये उसकी धुंधली आखों मे दिखाई देता है।
पल पल कही किसी एकांत में,
तो कभी कभी काम की उधेड़ बुन में,
वो अपने आसूं बहाना भूल गई।
ना जानें कितने जमाने गुजरे होंगे,
की वो अपनों को याद आना भूल गई।
हर पल ध्यान जिसका सिर्फ परवरिश में गया,
वो आज भी परवरिश में किसी ना किसी के ध्यान तो लगाती होगी,
होता ही होगा उसे भी अपनो की याद आती होगी।
होता ही होगा की जब उसे याद अपनो की आती होगी,
वो भी अपने जमानों की तस्वीरे फिर से सजाती होगी।
खुशीयों का उसके घर में ठिकाना क्यूं नहीं?
खत्म होता उसका दुख का खजाना क्यू नहीं?
वो भी पल पल गुहार लगाती होगी,
सहसा अकेले में सिमटी हुई बिखर जाती होगी।
अंधेरे उसके कमरे के अंदर एक आग लगाते होगे कहीं,
डर तो बचा ही नहीं यादों में जल जाते होगे कहीं।
उसका एकांत मुझे हर पल यही बताता है,
अंधेरी रातों को भी मन के उजालों से काटा जाता है।
एक जमाना गुजरा होगा उसे अपनी ख्वाहिशें सजाए हुए,
वक्त तो उसे भी लगा होगा अपनी तकलीफे मिटाए हुए।
ख्वाहिशों में उसके भी तो कहीं किसी का ठिकाना होगा,
या तो कोई अपना या फ़िर कोई अनजाना होगा।
छुपाती है उसकी हर हसी उसके गम के पहाड़ों को,
सजाती है वो अंधेरे से वो अपनी चाहर दीवारों को।
रोशनी का आना भी कभी कभी कोई बहाना होता होगा,
सिर्फ ठंडी हवा से ही झुर्रियों को भी मुस्काना होता होगा।
महिमा राखी
मैं महिमा बंसल,बेसवां ( अलीगढ़ ) , उत्तर प्रदेश से हूं।
मैं मास्टर ऑफ एजुकेशन में स्नातकोत्तर हूं। मुझे शुरु से ही विचारों, कहानियां, कविताएं, गजल, दोहे, और काव्य पढ़ने तथा सुनने का शौक रहा है। इसी शौक ने 16 अप्रैल 2019 से मेरे लिखने के शौक को आगाज किया। जिसके चलते मैंने अपनी एक स्वलिखित पुस्तक ‘काव्यांजलि महिमा’ को 21 मई सन् 2021 को प्रकाशित कराया। मुझे ज़िंदगी, प्रेरणा, प्रकृति, अनुभव तथा भावनाएं लिखने का शौक रहा है। मुझे मेरे परिवार से लगाव और प्रेम रहा है, और मेरे मुख्य प्रेरणा स्त्रोत मेरे पिता जी ( श्री विपिन बंसल) रहे हैं, जो स्वयं एक लेखक हैं।
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