होली में क्यों है गुजिया खास जाने गुजिया का इतिहास
गुजिया एक मध्यकाल का पकवान है. गुजिया और समोसा दोनों ही भारत में लगभग साथ में आये. दोनों मूल रूप से पश्चिमी देशों से मध्य एशिया होते हुए भारत आये. उत्तर भारत में गुजिया होली का एक पकवान है लेकिन भारत के कई सारे हिस्सों में गुजिया अन्य त्यौहारों में भी बनती है
होली पर सिर्फ रंग, पिचकारी और गुब्बारों का ही महत्व नहीं है, बल्कि किचन में बनने वाले पकवान भी लोगों के दिल में अपनी एक अलग ही जगह रखते हैं। हर शुभ काम का शुभारंभ मिठाई के साथ किया जाता है। गुजिया भी इन्हें मिठाई में से एक है, जो कि होली के खास मौके पर हर घर-परिवार में देखी जा सकती हैं। मावे या खोये के साथ ड्राई फ्रूट्स इनके टेस्टी होने का मुख्य कारण है। हर राज्य इसे अपने ही स्टाइल में बनाता है।
जहां उत्तर भारत में खोया और ड्राई फ्रूट्स की स्टफिंग की जाती है, वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोआ में नारियल की स्टफिंग इसे दूसरे राज्यों से अलग बनाती है। यह पूरे भारत भर में सिर्फ होली पर ही नहीं, बल्कि कई जगह दिवाली, क्रिसमस के मौके पर भी बनाई जाती है। यह मीठी, क्रंची गुजिया कमरे के तापमान पर ही खाई जाती है। सिर्फ हम ही नहीं, बल्कि हमारे जैसे बहुत से लोग इन्हें घर में बनाना ही पसंद करते हैं। बच्चों से लेकर बूढ़े गुजिया बड़े चाव से खाते हैं.
गुजिया एक मध्यकालीन डिश
गुजिया भारत के अतीत की परछाई है- बिल्कुल एक समोस की तरह। जैसे समोसा, आलू और मैदा ने फिलो शीट और कटे हुए मीट की जगह ली और वेस्ट एशिया से सफर करते हुए, भारत के भूमध्य भाग तक पहुंच गया। उसी प्रकार गुजिया का भी इतिहास है। यह भी समोसे का ही अंग है। दोनों के ही बाहरी भाग पर मैदा होती है। बस, इसकी भरावन और शेप बदल गई। सबकान्टिनेंटल (उपमहाद्वीप) शेफ नई तकनीक और सामग्री के साथ ऐसा करने में सक्षम हो पाए।
बात अगर होली के त्योहार की हो और गुजिया का नाम न आए ऐसा कैसे हो सकता है। मीठे के शौक़ीन लोग तो मानो पूरे साल गुजिया खाने के लिए इस ख़ास त्योहार का इंतजार करते हैं और रंगों में सराबोर होने के साथ गुजिया का लुत्फ़ उठाते हैं। खोए और मैदे से बनी ये ख़ास मिठाई वास्तव में जब प्लेट में सर्व की जाती है तब मुंह में पानी आ जाता है और इसका स्वाद लाजवाब लगता है। गुजिया खाते समय आपमें से न जाने कितनों के मन में ये ख्याल कभी न कभी तो जरूर आया होगा कि ये स्वादिष्ट मिठाई आखिर पहली बार कहां बनी होगी? आखिर इसकी रेसिपी सबसे पहले किसके मन में आयी होगी? किसने इस मिठाई का नाम गुजिया रखा होगा और कब ये होली की विशेषता बन गयी होगी?
ऐसे न जाने कितने सवाल मेरे मन में तो हर बार गुजिया को हाथ में उठाते ही आने लगते हैं। अगर आपके जेहन में भी इस तरह के कई सवाल आते हैं और आप इन सवालों का जवाब ढूढ़ रहे हैं तो चलिए यहां जानें इस लजीज व्यंजन की दिलचस्प कहानी और इसके इतिहास से जुड़े कुछ ख़ास फैक्ट्स के बारे में।
क्या है गुजिया का इतिहास
गुजिया की शुरुआत काफी पुरानी है। यह एक मध्यकालीन व्यंजन है जो मुगल काल से पनपा और कालांतर में त्योहारों की स्पेशल मिठाई बन गई। इसका सबसे पहला जिक्र तेरहवीं शताब्दी में एक ऐसे व्यंजन के रूप में सामने आता है जिसे गुड़ और आटे से तैयार किया गया था। ऐसा माना जाता है कि पहली बार गुजिया को गुड़ और शहद को आटे के पतले खोल में भरकर धूप में सुखाकर बनाया गया था और यह प्राचीन काल की एक स्वादिष्ट मिठाई थी। लेकिन जब आधुनिक गुजिया की बात आती है तब इसे सत्रहवीं सदी में पहली बार बनाया गया। गुजिया के इतिहास में ये बात सामने आती है कि इसे सबसे पहली बार उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बनाया गया था और वहीं से ये राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार और अन्य प्रदेशों में प्रचलित हो गई। कई जगह इस बात का जिक्र भी मिलता है कि भारत में समोसे की शुरुआत के साथ ही गुजिया भी भारत आयी और यहां के ख़ास व्यंजनों में से एक बन गयी।
गुजिया और गुझिया में है अंतर
अक्सर आपने लोगों को इस मिठाई के दो नाम लेते हुए सुना होगा गुजिया और गुझिया, आपमें से ज्यादातर लोग शायद नहीं जानते होंगे कि ये दोनों ही मिठाइयां अलग तरह से बनाई जाती हैं। वैसे तो दोनों ही मिठाइयों में मैदे के अंदर खोए या सूजी और ड्राई फ्रूट्स की फिलिंग होती है लेकिन इनका स्वाद थोड़ा अलग होता है। दरअसल जब आप गुजिया की बात करते हैं तब इसे मैदे के अंदर खोया भरकर बनाया जाता है, लेकिन जब आप गुझिया के बारे में बताते हैं तब इसमें मैदे की कोटिंग के ऊपर चीनी की चाशनी भी डाली जाती है। दोनों ही मिठाइयां अपने -अपने स्वाद के अनुसार पसंद की जाती हैं।
इस स्वादिष्ट मिठाई गुजिया (सूजी की गुजिया रेसिपी) को देशभर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जहां महाराष्ट्र में इसे करंजी कहा जाता है वहीं गुजरात में इसे घुघरा कहा जाता है, बिहार में इस मिठाई को पेड़किया नाम दिया गया है वहीं उत्तर भारत में से गुजिया और गुझिया नाम से जानी जाती है।
अलग जगहों में गुजिया के रूप हैं अलग
वैसे तो मुख्य रूप से गुजिया को बनाने के लिए मैदे को मोइन डालकर डो तैयार किया जाता है और इसकी लोई को पूड़ी की तरह से बेलकर उसमें खोया या भुनी हुई सूजी को उसमें चीनी मिलाकर भरा जाता है। फिर इस पूड़ी को मोड़कर किनारों को दबाकर गुजिया वाला आकार दिया जाता है। लेकिन कुछ और जगहों पर इसे अलग ढंग से भी बनाया जाता है। इसके ऊपर चाशनी की परत भी चढ़ाई जाती है और कुछ जगह गुजिया में ऊपर से रबड़ी मिलाकर भी खाई जाती है।
जब गुजिया बनाने के लिए महिलाएं बढ़ाती थीं नाखून
गुजिया के इतिहास में एक दिलचस्प बात ये सामने आती है कि एक समय ऐसा था जब औरतें गुजिया बनाने के लिए काफी दिनों पहले से ही अपने नाखून बढ़ाया करती थीं। तब औरतों का मानना था कि बढ़े हुए नाखूनों से गुजिया को आसानी से गोंठकर सही आकार दिया जा सकता है। पारंपरिक रूप से इसे हाथों से गोठ कर ही बनाया जाता था लेकिन अब इसे बनाने के कई अन्य तरीके भी हैं जैसे इसे सांचे से भी बनाया जाता है।
होली में क्यों बनाई जाती है गुजिया
दरअसल होली में गुजिया बनाने का चलन सदियों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि होली में सबसे पहले ब्रज में ठाकुर जी यानी कृष्ण भगवान को इस मिठाई का भोग लगाया जाता है। होली के त्योहार में इसे विशेष रूप से तैयार किया जाता है क्योंकि इसका चलन ब्रज से ही आया और ब्रज में ही होली के दिन पहली बार गुजिया का भोग लगाया गया था। तभी से ये होली की मुख्य मिठाई के रूप में सामने आयी। हालांकि अब ये मिठाई होली के अलावा भी कई त्योहारों जैसे दिवाली और बिहार में छठ पूजा में भी बनाई जाती है।
इस प्रकार गुजिया का इतिहास काफी पुराना है और अपनी खूबियों और बेहतरीन स्वाद की वजह से ये हमारे त्योहारों का मुख्य हिस्सा बन गयी।
अन्य नाम ‘गुजिया’ या ‘गुंजिया’
देश भारत
मुख्य सामग्री मैदा, मावा, सूजी, घी, चीनी, किशमिश
मावा 400 ग्राम
सूजी 100 ग्राम
चीनी 400 ग्राम
काजू 100 ग्राम
किशमिश 50 ग्राम
छोटी इलाइची 7-8
नारियल 100 ग्राम (कद्दूकस किया हुआ)
मैदा 500 ग्राम
घी 125 ग्राम (आटे के लिए), 2 चम्मच (कसार के लिए) और गुझिया तलने के लिए
अन्य जानकारी इसे छत्तीसगढ़ में कुसली, महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पिड़की और आंध्र प्रदेश में कज्जिकयालु कहते हैं।
गुझिया अथवा ‘गुजिया’ या ‘गुंजिया’ एक प्रकार का पकवान है जो मैदा और खोए से मिलकर बनाया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ राज्य में कुसली, महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पिड़की, आंध्र प्रदेश में कज्जिकयालु कहते हैं। उत्तर भारत में होली तथा दक्षिण भारत में दीपावली के अवसर पर घर में गुझिया बनाने की परंपरा है।
बनाने की विधि
गुझिया मुख्य रूप से दो तरह से बनाई जातीं है, एक- मावा भरी गुझिया, दूसरी रवा भरी गुझिया। मावा इलायची भरी गुझिया के ऊपर चीनी की एक परत चढ़ाकर वर्क लगाकर इसको एक नया रूप भी देते हैं। मावा के साथ कभी कभी हरा चना, मेवा या दूसरे खाद्य पदार्थ मिलाकर, जैसे अंजीर या खजूर की गुझिया भी बनाई जाती हैं।
आवश्यक सामग्री
गुझिया में भरने के लिए (कसार)
मावा – 400 ग्राम
सूजी – 100 ग्राम
घी – 2 चम्मच
चीनी – 400 ग्राम
काजू – 100 ग्राम (एक काजू को 5-6 टुकड़े करते हुये काट लीजिये)
किशमिश – 50 ग्राम (डंठल हों तो, तोड़ दीजिये)
छोटी इलाइची – 7-8 (छील कर कूट लीजिये)
नारियल – 100 ग्राम (1 कप कद्दूकस किया हुआ)[1]
गुझिया का आटा तैयार करने के लिये
मैदा – 500 ग्राम
दूध या दही – 50 ग्राम
घी – 125 ग्राम (2/3 कप )
घी – गुझिया तलने के लिये
कसार
भारी तले की कढ़ाई में मावा को हल्का भूरा होने तक भूनिये और एक बर्तन में निकाल लीजिये। कढ़ाई में घी डाल कर, सूजी डालिये, हल्का भूरा भून कर, एक प्लेट में निकाल लीजिये। चीनी को पीस लीजिये। सूखे मेवे कटे हुये तैयार हैं। मावा, सूजी, चीनी और मेवों को अच्छी तरह मिला लीजिये। गुझियों में भरने के लिये कसार तैयार है।[1]
विधि
मैदा को किसी बर्तन में छान कर निकाल लीजिये। घी पिघला कर आटे में डाल कर, अच्छी तरह मिलाइये। अब दूध डालकर आटे में मिलाइये, पानी की सहायता से कड़ा आटा गूथ लीजिये। आटे को आधा घंटे के लिये गीले कपड़े से ढककर रख दीजिये। आटे को खोलिये और मसल मसल कर मुलायम कीजिये। आटे से छोटी छोटी लोई तोड़ कर बना लीजिये (इतने आटे से 50- 55 लोइयां बन जायेगी)। लोइयों को गीले कपड़े से ढककर रखिये, एक लोई निकालिये 4 इंच के व्यास में पूरी बेलिये, बेली हुई पूरी थाली में रखते जाइये। जब 10 – 12 पूरियां थाली में हो जायं, अब इन्हें भर कर गुझिया तैयार कर लीजिये।
गुझिया भरने के तरीक़े
पूरी को हाथ पर रखना, पूरी के ऊपर मिश्रण रखना, मोड़ कर बन्द करना, और गुझिया कतरनी से काटना।
पूरी को हाथ पर रखना, पूरी के ऊपर मिश्रण रखना, मोड़ कर, बन्द करना, और गोंठना।
पूरी को, गुझिया के सांचे के ऊपर रखना, पूरी के ऊपर मिश्रण रखना, किनारों से पानी लगाकर, बन्द करना, दबाना।
आप तीनों तरीक़े से गुझिया बना सकते हैं, लेकिन तीसरा तरीक़ा अधिक आसान है, इसमें समय भी कम लगता है, साथ ही सारी गुझियां एक बराबर होती हैं।
- 10 पूरियां हमने बेल कर रखी हुई हैं। एक पूरी उठाइये, पूरी को सांचे के ऊपर रखिये, एक या डेड़ चम्मच कसार पूरी के ऊपर डालिये, किनारों पर उंगली के सहारे से पानी लगाइये। सांचे को बन्द कीजिये, दबाइये, गुझिया से अतिरिक्त पूरी हटा दीजिये। सांचे को खोलिये, गुझिया निकाल कर थाली में रखिये। एक एक करके सारी पुरियों की गुझिया इसी तरह बना कर थाली में लगाइये, मोटे धुले कपड़े से ढककर रखिये। फिर से 10 पूरियां बेलिये और इसी तरह गुझिया बनाइये और ढक दीजिये। सारी गुझिया इसी तरह से बना कर तैयार कर लीजिये, ढककर रख दीजिये।
अब मोटे तले की कढ़ाई में घी डाल कर गरम कीजिये। गरम घी में 7-8 गुझिया डालिये, धीमी और मध्यम आग पर हल्के भूरा होने तक पलट पलट कर तल लीजिये। कढ़ाई से गुझिया, थाली में निकालिये और किसी डलिया या बड़े चौड़े बर्तन में रखते जाइये। सारी गुझिया इसी तरह तल कर निकाल लीजिये।
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