October 4, 2024

Ajayshri Times

सामाजिक सरोकारों की एक पहल

नाज़ुक-रिश्ते [कविता©कमलेश कमल]

नाज़ुक-रिश्ते
[कविता©कमलेश कमल]
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नाज़ुक रिश्ते आज के
गहरे अर्थ के तार
संभल-संभल पग राखिए
क्या पूजा-घर, क्या प्यार

सूना कमरा, सूना आँगन
सूना सब संसार
सूना घर का कोना-कोना
माँ भी हुई बीमार

सब रिश्ते-नाते भूल कर
पकड़ा एक का हाथ
फटा कलेजा माता का
हुई आँखों से बरसात

शादी कर ली आप ही
टूटा पिता का मान
घर का बिखरा रेशा-रेशा
अँगना हुआ वीरान

बाप पाप बेचारा क्या करे
ज़िद हारा था आज
तोड़े़े सारे रिश्ते नाते
डूबने लगा जहाज़

माँ की ममता हिरण सी
यह ज़िद कँटीला तार
बेबस रोए हिरणी
शावक रोए ज़ार

पहले ही सब सोचिए
क्या ज़िद क्या मरजाद
बेटा भूला बाप को
ममता हुई उजाड़।

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