मेघनाद ‘इन्द्रजित्’ था या ‘इन्द्रजित’?
©कमलेश कमल
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सबसे पहले ‘जित्’ और ‘जित’ में अंतर समझें:–
★ दोनों की व्युत्पत्ति ‘जि’ से है; परंतु दोनों में बहुत अंतर है। ‘जि’ से ही जय, अजय, अजेय (जिसको अब तक जीता न गया हो), पराजय(‘पर’ यानी दूसरे की जय, अपनी हार) इत्यादिक शब्द बने हैं।
★ ‘जि’ से ही ‘जित’ शब्द बना है; जिसका अर्थ है– जिसको जीता गया, दमन किया हुआ, अभिभूत आदि।अजित का अर्थ है, ‘जिसे जीता नहीं गया हो’।
★जानना चाहिए कि ‘जित्’ सदा समास के अंत में प्रयुक्त होता है और ‘जीतनेवाला’ का अर्थ देता है। उदाहरण– कंसजित्, इन्द्रजित् आदि। ध्यान करें कि मेघनाद इन्द्रजित् था, इंद्रजीत अथवा इन्द्रजित नहीं। हिंदी की प्रकृति के अनुसार इसे ‘इंद्रजित्’ भी लिखा जा सकता है; परंतु ‘इंद्रजित’ नहीं।
★ विचारणीय है कि समास संस्कृत की प्रकृति है। ‘इन्द्रजित्’ एक सामासिक पद है और इसका अर्थ ‘इंद्र को जीतनेवाला’ तभी है, जब यह हलन्त हो। हिंदी में स्पष्ट नियम है कि जहाँ ‘हल’ चिह्न नहीं लगाने से अर्थ पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े, वहाँ ‘हल’ के बिना भी लिखा जा सकता है; परंतु जहाँ ‘हल’ चिह्न लगाने और नहीं लगाने से अर्थ-परिवर्तन होता हो, वहाँ यह चिह्न अवश्य लगाया जाए।
उदाहरण– ‘भगवान्’ को ‘भगवान’ और ‘हनुमान्’ को ‘हनुमान’ लिखा जा सकता है; क्योंकि अर्थ पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ रहा है। हाँ, जगत् (संसार) को जगत(कुआँ का चबूतरा) नहीं लिखा जा सकता। यही कारण है कि ‘जित्’ को ‘जित’ नहीं लिखा जा सकता।
★ चूँकि, ‘जित’ का अर्थ ‘जीतनेवाला’ नहीं होता और ‘जीत’ संस्कृत का शब्द ही नहीं है, बल्कि ‘जित’ के तद्भवीकरण से बना है; इसलिए मेघनाद के लिए ‘इन्द्रजित’ और ‘इन्द्रजीत’ का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
आपका ही,
कमल
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