घुघती घुरुण लगी मेरा मैत की गीत से मिलता जुलता लोकगीत

घुघती घुरुण लगी मेरा मैत की लोकप्रिय गढवाली गीत है जो नरेंद्र सिंह नेगी के गीत संगीत कंठ से सजा एक लोकप्रिय गढवाली गीत है। यह गीत उनके खुचकन्डी गीत संग्रह में भी संकलित है। किंतु यह गीत नेगी जी स्वरचित गीत है किंतु गीत के शब्द और अंतरा हु ब हु एक गढवाली लोकगीत की तरह है ज्यादात्तर गीत अंतरा के शब्द समान है। यह लोकगीत गोविंद चातक लोकगीत संकलन में प्रकाशित है । यह लोकगीत लगभग डेढ़ दशक पूर्व 2005 में जनवरी-जून अंक हिम ओज त्रैमासिक पत्रिका अरण्य अंक में भी प्रकाशित है। कहने आशय अगर स्वरचित गीत है नरेंद्र सिंह नेगी जी का तो यह स्वरचित गीत लोकगीत से इतना क्यों मिल रहा है । किसी रचना को पढ़कर एक नवीन रचना बनती है कई बार। पर बनी हुई रचना की हु ब हु शक्ल लिए हुए जो रचना आकार ले रही है तो वह स्वरचित कैसे हो जाती है। बसीर बद्र साहब शेर याद आ रहा है इन दोनों गीतों की शक्ल एक जैसी पाकर
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
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