गीताप्रेस के लिए जर्मन कंपनी ने बदल दी मशीन की तकनीक
गोरखपुर में गीताप्रेस धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन करता है। पुस्तकों के प्रकाशन के साथ ही वह सनानत मूल्यों और धार्मिक आस्था का भी ख्याल करता है। इसलिए पुस्तकों की बाइंडिंग में यहां जिलेटिन युक्त गोंद का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
गोरखपुर, गजाधर द्विवेदी। पुस्तकों की छपाई, सिलाई और बाइंडिंग में शुचिता व सनातन मूल्यों की रक्षा करने के गीताप्रेस के भाव को जर्मन मशीनरी कंपनी मूलर मार्टिनी ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैैं। कंपनी ने गीताप्रेस के लिए मशीनों की तकनीक बदल दी। कंपनी का दावा है कि उसकी मशीनों में पशुओं की चर्बी यानी जिलेटिन युक्त गोंद के बजाय सिंथेटिक एडहेसिव का प्रयोग किया जा सकेगा। कंपनी के इस कदम से जिलेटिन मुक्त गोंद का ही प्रयोग करने वाला गीताप्रेस अब अपनी किताबों की केसिंग (जिल्द बनाने का काम) और बाइंडिंग उच्च तकनीक की मशीनों से कर सकेगा।
गीताप्रेस धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन मात्र नहीं करता, बल्कि कार्य व्यापार में सनातन धर्म के मूल्यों की रक्षा भी करता है। इसीलिए पुस्तकों की जिल्द तैयार करने में पशु चर्बी मुक्त यानी सिंथेटिक गोंद का ही प्रयोग करता है। बाजार में अभी जितनी मशीनें हैैं, उनमें पशु चर्बी वाले गोंद का ही प्रयोग हो सकता है। इसीलिए गीताप्रेस में ये मशीनें नहीं लग पाईं और केसिंग व बाइंडिंग आज भी हाथ से होती है।
19 करोड़ रुपये की हैैं मशीनें
केस मेकर करीब चार करोड़ व केसिंग इन मशीन लगभग 15 करोड़ रुपये की है। केस मेकर में कपड़ा, दफ्ती, गोंद रखने के लिए अलग-अलग बाक्स होते हैैं, जिनमें से मशीन सामग्री उठाकर जिल्द तैयार कर देती है। इसी तरह केसिंग इन में पुस्तक, जिल्द, सिराजा (पुस्तक के पीछे लगने वाला कपड़ा) व बुक मार्क (धागा) रखने के लिए बाक्स हैैं, जिनसे मशीन सजिल्द पुस्तक तैयार करेगी।
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अधिक पुस्तकें तैयार करेंगे कम कर्मचारी
अभी 20 कर्मचारी दिनभर में 18 हजार जिल्द बनाते हैैं। केस मेकर से तीन कर्मचारी प्रति घंटा 3600 यानी आठ घंटे में लगभग 29 हजार जिल्द तैयार करेंगे। वहीं, 70 कर्मचारी जिल्द में चिपकाकर 20 हजार पुस्तकें तैयार करते हैैं। केसिंग इन मशीन से छह कर्मचारी आठ घंटे में अधिक गुणवत्ता वाली 29 हजार पुस्तकें तैयार कर लेंगे।
भूमि पर नहीं रखी जाती पुस्तकें
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गीताप्रेस में पुस्तक प्रकाशन संबंधी हर कार्य शुचिता, श्रद्धा व आस्था से होता है। छपाई के बाद यहां पुस्तकें भूमि पर नहीं रखी जातीं। वहां तक जूते पहनकर नहीं जा सकते। फार्मा मिलाने, बंडल बनाने, सिलाई करने के पहले व बाद में पुस्तकें रखने के लिए लकड़ी, प्लास्टिक व लोहे के चार गुणा चार फीट के एक हजार से अधिक पायलट बनाए गए हैं। जिल्द लगाते समय भी पुस्तकें दरी पर रखी जाती हैैं। पैकिंग कें बाद कार्टन भी पायलट पर रखे जाते हैैं।
अस्था का ध्यान रख मशीन में किया गया है बदलाव
मूलर मार्टिनी कंपनी के भारत में क्षेत्रीय महाप्रबंधक पीआर लक्ष्मी नारायणन ने बताया कि गीताप्रेस की आस्था को ध्यान में रखकर मशीन की ग्लू अप्लीकेशन व ड्राइंग (सुखाने) तकनीक बदली गई है। मशीन में उसी ग्लू का प्रयोग हो सकेगा, जिसका प्रयोग गीताप्रेस में हो रहा है। बदलाव से मशीन थोड़ी धीमी चलेगी।


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