आंदोलन गढवाली में हो रहे भाषा संस्कृति के मूल दर्शन जौंनसार में दिख रहे
गढवाली समाज मे कला साहित्य संस्कृति के संवर्धन इतना गम्भीर महीन कार्य हो रहा है आज मेले कौथिग महानगरों तक अपनी पैठ बना चुकी है। गढवाली भाषा साहित्य में पुस्तकें प्रकाशित बहुतायात मात्रा में हो रही हैं गढ़वाली भाषा मे फिल्में ओटीटी प्लेटफार्म से लेकर पीवीआर औऱ मल्टीप्लेक्स में गढ़वाली फिल्में लग रही हैं गढ़वाली गीत संस्कृति का तो यू ट्यूब में मिलियनो व्यूज वाला हिसाब किताब है। और कविताओं का तो आंदोलन मंचो में भाषा में विस्तार पा रहा है। पाठक्रमो तक गढवाली पहुंच गई स्कुल कॉलेजों में। गढ़वाली समाज के विवाह में भी पारंपरिक मांगल गीत लगने लग गए हैं वेडिंग पॉइंट्स में। व्यावसायिक गायक कलाकारों और संगीतज्ञों संगत पंगत के साथ वो अलग बात है कि उत्तराखंड का राज्य वाद्य ढोल गढवाली माँगलो के साथ ट्यूनिंग नही करता दिख रहा किसी के कंधे में युगल वाद्य ढोल दमौ नही है चलो गढवाली संस्कृति में इतना काम होने के बाद कला संस्कृति भाषा मूल स्वरूप गढवाली समाज मे नही जौनसार में समृद्ध दिखता है। ऐसा लगता है उत्तराखंड मूल संस्कृति जौनसार में संरक्षण लिए हुए है।
- शैलेंद्र जोशी की कलम से
फीचर में लगी फोटो सोशल मीडिया से प्राप्त
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