पाड़ मा राम कबि हरदा नी अर राबण कबि म्वर्दू नी!

पाड़ मा राम कबि हरदा नी अर राबण कबि म्वर्दू नी!

उमुर रै ह्वलि यि क्वी पांच छयेक साल! लम्बू कोट, झकमझोळ सुलार! रकड़म-रकड़म बड़ो दगड़ा कदमताल! बीच बाटा मा कयि घच्घैकि पुछदा छा- हे कख जाणा छयां रे? जबाब खबड़ा मा सि धरयूं रौंदू छौ- या….रामजिला ।
– हैं…! कख…?
– रामजिला! रामजिला!

इनि औंदि दौं बि औड़िकीटी मजा लेणू पुछदरों कि कमी नि रौंदि छै – हे कख बिटि औंणा छयां रे ? जबाब वी छौ – या… रामजिला। पुछुण वळा टोकी ब्वल्दा छा- अबे लोळा लाटौं! रै ग्यां लाटा का लाटा हि! अरे रामजिला ना रामलीला! रामलीला! पर बार-बार रोकी-टोकि बि हमारा गिच्चौं बिटि झणी किलै ‘रामलीलै’ जगा ‘रामजिला’ रौड़ जांदू छौ।

बस्स, इन समझा कि दिखणां त भगवान रामचन्द्र जी कि लीला रयां पर औणा-जाणा रामजिला रयां। सच पूछा त तबारि हारमुनी-तबलै संगत मा बोल नि बिग्येंदा छा। फकत हे ! रे ! ऐ ! हा ! ओ ! हो ! सब्द्वी ढौळ दिमाग मा बैठीं रौंदि छै। रागस, बांदरु तैं किलै भगौंणा-कुरचणा छन अर रागस, बांदरु तैं किलै लिकल्यौंणा छन? इन बि स्वच्णू-समझुण लैक बुद्धि नी छै। बीच मा कबि-कबार निंदै झपाकि बि ऐ जांदि छै। पर परदा खैंच्दि नयू सीन औण पर हमारि मूण फेर टकटिकी ह्वे जांदि छै।

एक दिन परदा उठी! न तख तबलौ घमग्याट, न हारमुन्यू टंवीट्याट, न बंदरू घिबलाट, न रागसूं कु खिगताट। हमुन देखी राजा दसरथ खटुला मा प्वड़ि- प्वड़ि पिड़न ऐड़ौणा छन – हे राम! हे राम! हम चर्रि तिरपां नजर घुमोणा रयां कि अबि औंदन राम तबि औंदन राम। पर हे राम! हे राम! कर्दू-कर्दूं राजा दसरथा पराण चल गेनी पर राम नि ऐनी। क्वी बीच मा ब्वल्दू सुण्ये – हे राम!! राम चन्द्र जी त झणी कै जंगळ मा छन धौं ‘बुणपास’ कटणा। क्वी हैंकु ब्वनू छौ- दिखणा छयां, जब जाणौ बग्त औंदू त कमायूं – धमायूं इक्खि छुट जांदू। य ह्वे प्रभ्वी माया! हमुन तपाक पूछी- कख च प्रभ्वी माया? वून बोली- अरे लाटौं जैकु नौ बल माया। छाया दिख्ये जांदि पर माया नि दिख्यांदि। वे दिन हम चुप ह्वे ग्यां। पर हम एक नयू सबद सीखी अयां ‘बुणपास’ । भौत बात मा पता चलि कि वू ‘बुणपास’ नी ‘बणवास’ च।

अगनै हैंका दिन हमुन देखी जनि सीता मातन लक्षमणै खैंची रेखा लंघै तनि राबण सीता माता तैं स्यां उठैकि ली गि। बाप रे बाप! राबणो स्यू बिकराल रूप देखी सर्रा गात झझरेगी। सीता माता तैं बचैण वळू जटायू बि घैल ह्वेगि। क्वी ब्वनो छौ – रामै लीला। हमुन फेर पूछी- कख च रामै लीला? वून बोली अरे लाटा तुम दिखणा क्य छयां? हमुन जबाब दे- रामजिला। जरा दुबारा बोल दि! हमुन दुबारा बि वी जबाब दे- रामजिला।

इथगा सुणदि बिथेक रागसै तरौं हैंस्दू-हैंस्दूं वेकू ब्वल्यूं हमुन सूणी- अबे! उल्वापट्ठौं। रै ग्यां न लाटा का लाटै! अकल नौ कि चीज त झणी कख च धौं कखराळि तौळ धरीं! य त वी मसल ह्वेगि कि सर्रा रात बल रामलीला देखी अर सुब्येर बल सीतौ बुबा कु छौ? अबे हे ! य रामजिला नी ! रामलीला च ! राम लीला !

बरमुंड मा घौंण सि प्वड़ि। यु क्य ब्वनू रामलीला? कक्खि येकु दिमाग त खराब त नी ह्वे गी? य रामजिला अब रामलीला कन क्वे ह्वे गी? वेका रामलीला ब्वल्यां पर बिस्वास हि नी ह्वे जी! लीला फूफू, लीला दीदी हमारु सुण्यूं छौ पर रामचन्द्र जी दगड़ा जुड्यूं लीला सब्द हमारा दिमाग मा कबि रयि नी ।

झूठ क्यांकू ब्वन, हमारा दिमादा भित्र बैठ्यां रामजिला तैं रामलीला बण्ण मा भौत बग्त लगी। बाद मा जरा-जरा कैकि हमुन रामचन्द्र जी की कथा समझुण सुरु करि। लक्ष्मणै स्यवा, भरत कु त्याग, कैकयी कु हठ, मंथरा आळी-जाळी, अहिल्यो उद्धार, स्वेतुबंधु, नल नील, ताड़का रगस्येण, सुपणखा, रागस-बांदर-जोकर, हनुमान जी कु छन? बाली-सुग्रीव कु छा? वीभीषण कु छौ? रामचन्द्र जी कु बनवास। धनुषखण्ड, लक्ष्मण-परषुरामै बोल चाल, लक्ष्मण सग्ति, संजीवनी बूट्यूं तैं हनुमान जी कि दन्का दन्की, सुसैन बैध, कुम्भकरणै निंद, राम राबण जुद्ध, आखिर मा रामचन्द्र जी कि जीत अर राबणै मट्टी पलीत। दसहरा दिन राबण तैं फूका अर खुसी मणा।

पर अब त समझ मा हि नी औणू कि ‘रामलीला’ मा कब अर कख क्य च होणू? दिमाग हि मा नि औणू कि कु राबण म्वनू अर कु बच्णू? यूं गांण्यूंन त हम बोल सक्दां कि पाड़ मा राम कबि हरदा नी अर राबण कबि म्वर्दू नी। पर न न ना इनि बात बि नी! दरसल पैली हौरि बात छै! तबारि रामलीला द्वी चार पट्यूं का बीच एक ही जगा होंदि छै। पर अब वा बात नी।

अब हरेक गौं मा सर्रा साल जगा-जगा रामलीला होणी। एक जगा राबण फुक्ये-फक्येगि हैंकि जगा अबि सुपणखै नाक कटेणी। एक जगा राजचन्द्र जी कु राजतिलक ह्वे जांदू हैंकि जगा बल राम-राबण जुद्धै तयारि होणी। इन मा क्य ब्वन कि कैकि ‘बग्वाळ’ कब आण अर कैन ‘इगास’ कब मनाण? साफ अर सीधी बात ‘बग्वाळ’ अर ‘इगासै’ लड़ै मा क्य राण? जै मा सामर्थ वेन ‘रज बग्वाळ’, ‘छुटि बग्वाळ’ ‘बड़ि बग्वाळ’ बि मनाण। हम छां घर गुदड़या! बग्वाळ -इगास तक बच्यां रै ग्यां त हमुन अपड़ा बळद्वी ‘बळदराज’ मनाण अर गोर-बछर्वा खुट्टौं ध्वेकि तौं ‘पींडू-पाणी ’ खलाण। भै! एका-हैंकौ तैं क्य गजमुंगरु उठाण?

बकि सिरीमान! क्वी बुरु माण चा भलू मान! अपड़ा-अपड़ा नौ कि संगरांद सब्यूंन बजाण।

(फोटू- राबणै भेसभूसा मा भुला जगत किशोर बड़थ्वाल )

व्यंग आलेख:  नरेंद्र कठैत

Please follow and like us:
Pin Share

About The Author

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Enjoy this blog? Please spread the word :)

YOUTUBE
INSTAGRAM