लोकभाषा की धाद लगाता एक प्रतिष्ठान
गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान
देहरादून
लोकभाषा की धाद लगाता एक प्रतिष्ठान

स्थान गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून अगर किसी से पूछो पत्ता कहाँ है शायद कोई बता पाए। गूगल मैप में सर्च करो तो भी नही मिलेगा यह गंतव्य ! मॉस मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक भी इसकी कोई खबरसार नही। अस्सी के दशक मध्य काल में शुरू हुआ यह प्रतिष्ठान अस्सी के दशक के अंतिम वर्ष से एक वर्ष पूर्व ही इस संस्था की संध्या हो गयी थी ।किंतु गढवाली लोकभाषा में निकल रही धाद पत्रिका और धाद संस्था इसी प्रतिष्ठान की सोच का विस्तार है । धाद पत्रिका के शुरुआती कुछ अंक इसी प्रतिष्ठान से प्रकाशित हुए , स्मृति में गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून कितने लोगों के है , यह तो शोध कार्य का विषय है। पर यह प्रतिष्ठान था साहब देहरादून में एक जमाने में। आज इस प्रतिष्ठान की सोच के साथ अलग अलग शाखाओं में कार्य हो रहा धाद नाम से । इस प्रतिष्ठान के अध्यक्ष थे भगवती प्रसाद नौटियाल जी नौटियाल जी का प्रतिष्ठान को मूरत देने में अपना अमूल्य योगदान दिया उनके प्रयासों से और इस प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों की सामूहिक पहल का मूर्त रूप है धाद और सचिव थे प्रेम गोदियाल जी इस प्रतिष्ठान में दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल जी, लोकेश नवानी जी ,जगदीश बडोला जी आदि सदस्य भी सम्मलित थे। गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून तो बंद हो गया किंतु धाद पत्रिका , धाद लोक भाषा अभियान और धाद संस्था का उदय हुआ। और गढवाली के धाद शब्द का विस्तार । गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून ने गढवाली साहित्य के लिए प्रकाशन कार्य भी किया। जिसमें दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल जी के कहानी संग्रह म्वारी और ब्वारी पुस्तक प्रकाशित हैं । यह दोनों पुस्तकें गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून से प्रकाशित हुई। धाद के संपादक और संरक्षक भी बदलते रहे समय समय पर किंतु धाद के किसी पटल में गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून का जिर्क शायद ही कहीं पढ़ने और न ही कहीं सुनने को मिलता है । आज इस प्रतिष्ठान को भले न कोई जानता हो पर मातृभाषा औऱ लोकभाषा और सामाजिक स्वरूप ले लिया इस प्रतिष्ठान की धाद ने किसी न किसी रूप में समय काल परिस्थितियों के अनुसार।
लेख: के तथ्य साहित्यकार भगवती प्रसाद नौटियाल जी के पत्र के आधार में
[2/22, 9:27 PM] Dinesh Dhyani: गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान विख्यात भाषाविद भगवती प्रसाद नौटियाल, धाद के संस्थापक लोकेश नवानी, विख्यात कहानीकार दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल, समाजसेवी जगदीश बडोला तथा अन्य साहित्य प्रेमियों द्वारा वर्ष 1984 में देहरादून में स्थापित किया गया था। सन् 1990 से गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान, दिल्ली से संचालित हो रहा है। सभी बड़े साहित्यकार इससे जुड़े हैं और इसके आयोजनों में भागीदारी करते हैं। प्रतिष्ठान अपनी स्थापना से अबतक निरंतर कार्यशील है। गढ़वाली भाषा को आगे बढ़ाने में प्रतिष्ठान का बहुत बड़ा योगदान है। दर्जनों पुस्तकें , अनेकों काव्य गोष्ठि यां, सेमिनार तथा साहित्योत्सव गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान आयोजित कर चुका है। वर्तमान में गढ़वाली और हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार रमेश चंद्र घिल्डियाल इसके अध्यक्ष हैं।
[2/22, 9:27 PM] Dinesh Dhyani: जो लोग साहित्य के बारे में आधी अधूरी जानकारी रखते हैं, प्रकाशित साहित्य को पढ़ना नहीं चाहते, वे गूगल की जानकारी को ही सब कुछ समझते हैं। इन अल्प ज्ञानियों को गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान, उनकी प्रकाशित दर्जनों पुस्तकों में ढूंढ़ना चाहिए जो कई पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं।
गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान के प्रथम अध्यक्ष भगवती प्रसाद नौटियाल जी अपने पत्र में यह कहा है। गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान की देहरादून मे 1989 संध्या हुई तब धाद गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान से निकली उसके बाद वो दिल्ली शिफ्ट हो गए। दिल्ली में यह प्रतिष्ठान है यह अलग विषय है। पत्र का जो मूल विषय है वह यह है धाद की संकल्पना किसी व्यक्ति की नही एक सामूहिक प्रयास से धाद निकली और धाद के शुरुआती अंक गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून से निकले । और धाद के 2000 तक जब भी निकली इसके संपादक और संरक्षक बदलते रहे और ये कभी मासिक , कभी फोर्डल तो कभी वार्षिक अंक में निकली। वर्तमान में धाद की संकल्पना एक व्यक्ति के नाम पर जब केंद्रित होती दिखी तब यह पत्र 2015 में लिखा गया है धाद सम्पादक को नौटियाल जी द्वारा धाद किसी एक व्यक्ति की संकल्पना परिकल्पना नही कभी भी एक सामूहिक प्रयास है गढ़वाल प्रतिष्ठान देहरादून द्वारा रहा पर वर्तमान में धाद की संकल्पना नाम जुड़ गया किसी व्यक्ति का पर जो मूल तथ्य का उसका जिर्क नही हुआ । यह जानकारी भगवती प्रसाद नौटियाल जी पत्र के माध्यम से पाठकों दे रहे हैं