December 10, 2023

Ajayshri Times

सामाजिक सरोकारों की एक पहल

गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून गूगल मैप में सर्च करो तो भी नही मिलेगा यह गंतव्य !

लोकभाषा की धाद लगाता एक प्रतिष्ठान

गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान
देहरादून

लोकभाषा की धाद लगाता एक प्रतिष्ठान

स्थान गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून अगर किसी से पूछो पत्ता कहाँ है शायद कोई बता पाए। गूगल मैप में सर्च करो तो भी नही मिलेगा यह गंतव्य ! मॉस मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक भी इसकी कोई खबरसार नही। अस्सी के दशक मध्य काल में शुरू हुआ यह प्रतिष्ठान अस्सी के दशक के अंतिम वर्ष से एक वर्ष पूर्व ही इस संस्था की संध्या हो गयी थी ।किंतु गढवाली लोकभाषा में निकल रही धाद पत्रिका और धाद संस्था इसी प्रतिष्ठान की सोच का विस्तार है । धाद पत्रिका के शुरुआती कुछ अंक इसी प्रतिष्ठान से प्रकाशित हुए , स्मृति में गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून कितने लोगों के है , यह तो शोध कार्य का विषय है। पर यह प्रतिष्ठान था साहब देहरादून में एक जमाने में। आज इस प्रतिष्ठान की सोच के साथ अलग अलग शाखाओं में कार्य हो रहा धाद नाम से । इस प्रतिष्ठान के अध्यक्ष थे भगवती प्रसाद नौटियाल जी नौटियाल जी का प्रतिष्ठान को मूरत देने में अपना अमूल्य योगदान दिया उनके प्रयासों से और इस प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों की सामूहिक पहल का मूर्त रूप है धाद और सचिव थे प्रेम गोदियाल जी इस प्रतिष्ठान में दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल जी, लोकेश नवानी जी ,जगदीश बडोला जी आदि सदस्य भी सम्मलित थे। गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून तो बंद हो गया किंतु धाद पत्रिका , धाद लोक भाषा अभियान और धाद संस्था का उदय हुआ। और गढवाली के धाद शब्द का विस्तार । गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून ने गढवाली साहित्य के लिए प्रकाशन कार्य भी किया। जिसमें दुर्गा प्रसाद घिल्डियाल जी के कहानी संग्रह म्वारी और ब्वारी पुस्तक प्रकाशित हैं । यह दोनों पुस्तकें गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून से प्रकाशित हुई। धाद के संपादक और संरक्षक भी बदलते रहे समय समय पर किंतु धाद के किसी पटल में गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान देहरादून का जिर्क शायद ही कहीं पढ़ने और न ही कहीं सुनने को मिलता है । आज इस प्रतिष्ठान को भले न कोई जानता हो पर मातृभाषा औऱ लोकभाषा और सामाजिक स्वरूप ले लिया इस प्रतिष्ठान की धाद ने किसी न किसी रूप में समय काल परिस्थितियों के अनुसार।

लेख: के तथ्य साहित्यकार भगवती प्रसाद नौटियाल जी के पत्र के आधार में

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