अजब प्रेम कथा है।_डॉ सुहेला अहमद के उपन्यास अजब प्रेम कथा है।_____ पहली कड़ी
अजब प्रेम कथा है।_____
महल से बाहर शोर मचा
“चांद निकल आया ,चांद निकलआया,”
जी़नत ने बड़ी अदा से उठ कर महल की खिड़की से देखा,लोग एक दूसरे को चांद दिखने की मुबारकबाद दे रहे थे ,तो ये चांद रात थी, पूरे एक महीने के रोजो़ं के बाद।
अम्मा जान कल की तैयारियों में लग गईं और नौकरों को हिदायत मिलने लगी,कल क्या क्या पकवान बनेंगे ,अम्मा की आवाज़ बराबर आ रही थी,
“अरे बिटया सुनोबर कि़वामीं सिमय्यां तो तुम ही बनाओगी उसका जा़यका़ कुछ और ही होता है और सलीमा पुलाओ तो तुम्हारे हाथ का ही खायेंगे नवाब साहेब”।
उधर जी़नत और उनकी बहनें अपने अपने ग़रारे और दोपट्टे बार बार देख रही थीं , ज़ीनत को अपनी पोशाक कुछ जँच नही रही थी, वो बार बार डोपट्ट को सर पे डाल कर देख रही थी, जो उसके खूबसूरत चहरे को और खूबसूरत बना रहा था ,पर वो मुत्मईन नहीं थी,जीनत का रंग ज्यादा गोरा तो नही था मगर नैन नक्श ग़ज़ब, क्या बड़ीबाड़ी आंखे और घुटनों तक लंबे बाल, जब धुलते तो दूर तक फर्श पर बहते रहते,घंटों सूखते और फिर बड़े क़रीने से सुलझा कर संवारे जाते।
जी़नत को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था,आज न जाने क्यों वो बहुत कुछ ख़ास पहनना चाहती थी कि अचानक उसकी नजरें एक ग़रारा सूट पर पड़ी और वो उसको निकाल कर देखने लगी,
“हां ये ठीक रहेगा अब दर्जी से तो नया सिल नही सकते, वैसे भी चांद रात को दर्जियो को कहां फु़रसत होती है।”
सुबह हुई और नए सूरज के साथ ईद का मुबारक दिन आ गया बड़ी अफ़रा-तफ़री थी, बड़े भाईजान के पायेजामे में नाड़ा नहीं था,खुसरो को नहाने जाने की जल्दी थी तो किसी के कुर्ते में बटन कम था
“अरे भाई हमारी अचकन कहां है” नवाब साहेब बोले,”बेगम ज़रा हमारी मदद करवा दें ,अपको तो खाने की हिदायत देते देते हमारी कोइ फिक्र ही नही रही”
बेगम पारा मुकुराती हुई नवाब साहेब की तरफ़ बढीं और कुर्ते का बटन लगा दिया,जो वो खुद भी लगा सकते थे पर उन्हें तो बेगम को छेड़ने मैं मजा़ आता था , हो भी क्यों ना ,आज इर्द का दिन था।
सब नमाज़ पढ़ने जाने के लिए तैयार हो गए और खूबसूरत बग्घी मैं बैठ जामा मस्जिद की तरफ चल पड़े।
नवाब वजाहत के पांच बच्चे थे, तीन बेटियां और दो बेटे ,सबसे बड़ी बेटी अबरीन की शादी हो चुकी थी उससे छोटा बड़ा बेटा जावेद फिर ज़ीनत, छोटी बेटी नौशीन और सबसे छोटा ओर सबका लाडला खुसरो। उनकी बेगम निज़ाम हैदराबाद के खा़नदानी से थीं,बड़ी मुन्तजि़म और समझदार खा़तून थीं,सब बच्चों को अच्छी तरबियत दी थी।बहुत कुछ पीछे छूट गया था पर खा़नदानी विका़र अभी भी बाकी़ था और बड़ा नाम और इज्ज़त थी।
तो बात हो रही थी ईद के दिन की,नवाब साहेब अपने दोनो बेटों के साथ ईद की नमाज़ अदा करके घर की तरफ़ रवाना हो गए उधर घर में सारी ख्वा़तीन सज धज कर तैयार थीं और घर के मर्दों के आने का इंतजार कर रही थीं ,हां बेगम पारा को थोड़ी देर हो रही थी आखिरकार वो भी नए कपड़ों में आ गयीं, बेगम पारा ने हल्के क्रीम रंग का गरारा सूट पहना था जिसमें उनकी शख्सि़यत और भी उभार रहा था ,आते ही बोलीं,
“चलो बच्चों अब हम भी अपनी नमाज़ अदा करलें”
अम्माजान ने दोनो बेटियों और घर की नौकरानियों के साथ नमाज़ पढ़ी और खैरोबरकत की दुआ के साथ सबकी सलामती की दुआ की गई।
इस दरमियान सारे पकवान टेबल पर लग चुके थे,।इतने में ही बाहरी दरवाजे से आवाज़ आई,
“अरे ज़ीनत कहां हो तुम सब ,हम आ गए,” ये अब्बा जान की आवाज थी ।इतना सुनना था के नौशीन और जीनत भाग कर बड़ी ढयूढी की तरफ़ भागे ,नवाब साहेब ने बड़े प्यार से दोनो बच्चियों को गले लगाया और सब को ईद की मुबारकबाद दी,बच्चों के पीछे बेगम पारा मुस्कुरा कर अपने बच्चों और फिर शौहर की तरफ देख रही थीं।
बस फिर क्या था ,अब तो ईदी की बारी थी अब्बा जान को” ईदो ईदी” की आवाज़ सुनाई दे रही थीं।
नवाब साहेब ने अपना खू़बसूरत बटुआ निकाला और सब को बारी बारी ईदी दी गई ,पर खुसरो अटक गया,
“नहीं ,मुझे सब से ज़्यादा ईदी चाहिए “और अब्बा को दोबारा अपना बटुआ खोलना पड़ा।
बेगम पारा की तरफ कनखियों से देखते हुए बोले,
“अपकी ईदी तो हम कमरे में जा कर देंगे”,इस बात पर बेगम धीरे से मुस्कुरा कर चुप हो गईं।
बेगम उनकी बात को नज़रंदाज़ करते हुए बोलीं,
“आइये सब लोग सिवय्यां खाएँ, आपकी पसंदीदा हर चीज़ बनी है, शीरखोरमा और कि़मवामी सिवय्यां और चने की दाल का हलवा भी है।”
खाने के बाद लोगों का आना जाना और मुबारकबाद देने का सिलसिला शुरू होगया।
जीनत जो आज गुलाबी रंग के खूबसूरत ग़रारे मैं गज़ब ढा रही थी, अपने कमरे मैं चली गई ये आवाज लगाते हुए कि बुआ मुझे हलवा और ला दीजिए, और घर की मुलाज़मा उसको बडे प्यार से देखते हुए,” जी अभी लाई बिटिया “कह कर चली गई।
जीनत अपने कमरे की खिड़की से बाहर का नजा़रा देखने लगी, जो पिछले हिस्से में खुलती थी और वहां से सड़क भी दिखती थी,आज इर्द की वजह से काफी भीड़ थी और पुलिस को मैनेज करना पड़ रहा था, कुछ सीनियर पुलिस अफसर भी दिखाई दे रहे थे ।अचानक ज़ीनत की नज़र एक पुलिस अफ़सर पर पड़ी और वो उसको देखती ही रह गई,लंबा क़द गोरा चहरा, बड़ी बड़ी आंखें घने बाल, हल्की मूछें, यानी एक बहुत ख़ूबसूरत और वजीह इंसान और उस पर ये पुलिस की वर्दी जो उसपर खूब जँच रही थी। ज़ीनत की नजरें उसके चहरे से नहीं हट रही थीं दिल दिल जोर जोर से धड़क रहा था,वो सोचने लगी उसे ये क्या हो रहा है, क्यों मक़नतीस की तरह उस तरफ खिंची चली जा रही है।
बेगम पारा ने अपनी तीनों लड़कियों को बड़ी अच्छी तरह बड़ा किया था,तमीज़ और तहजी़ब, सब सिखाई थी,लड़कियों को भी पता था कि वो किस खा़नदान की है और उन्हें किस तरह अपनी अस्मत और इज़्ज़त को संभालना है पर आज ये क्या हो गया ये दिल कहां खो रहा है। किसी से बात करते उस नौजवान ने अचानक पीछे मुड़ कर देखा और उसकी नज़र ज़ीनत की नज़र से टकरा गई जो उसे ही देखे जा रही थे,कुछ सेकंड के लिए दोनों की नजरें मिलीं और ज़ीनत घबरा कर पीछे हट गई और वो पुलिस अफसर भी अपनी ड्यूटी निभाने मैं मसरूफ होगया ,उसने शायद ख्वाब मैं भी नही सोचा होगा के ये चन्द लम्हे उसकी जिंदगी बदल देंगे।
नमस्ते दोस्तो, मेरा छोटा सा परिचय :-
मेरा नाम Dr Suhela Ahmad.
मेरी सारी।पढ़ाई AMU से हुई है। मेरा school,college और university.
1.Bsc Hons.
2.Msc.Zoology
3.M.phil Entomology
4.Ph.D.Entomology,
5..B.Ed.
6.Tamil Nadu mein assistant professor
देहरादून आकर मैं कुछ समाज के लिए करना चाहती थी,उस वक्त उम्र भी कम थी
में एक बार महंत श्री इंद्रेश चरण दास जी से मिली थी और उनकी बात कि ” बेटा मैं चाहता हूं के इन बच्चों को अच्छे टीचर्स मिलें।”
वहां मैने अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल दिए,एक बार SGRR ज्वाइन किया तो
फिर छोड़ा नहीं और मैं बस ये ही सोचती थी के इन बच्चों और स्कूल के लिए कुछ कर सकूं। और मैं खुश हूं के मैने ऐसा किया ,मुझसे लोग पूछते के आप SGRR में क्यों है ,आप के पास इतना कुछ है,कुछ लोग तो ये भी कह देते, कि पता नहीं Ph D . है भी के नहीं मेरी इस degree को जिसको मैने 6 साल, दिन और रात महनत करके लिया जिसको देश विदेश में सब ने सराहा।
पर मैं अडिग रही।
1 PGT Biology rahi
2.co.orordinator for cutural activities.
3.setting of science labs,help in affiliation of school to C.B.S.C.
4 organising school functions.
5..participating in various cultural programmes
3.Principal of oldest S.G.R.R.public school Dehradun.
Bahut sare certificate aur appreciation,list lambi hai.per mera subse bara achevment is,grooming my students.
Hobbies.,. Reading and writing poetry and prose in Hindi,Urdu and sonetimes English also
माफ़ कीजिए पूरा हिंदी में नहीं लिखा.
कुछ लिखने में गलत होगया हो तो माफी।
रहा मेरा अदबी सफर मैने जो लिखा वो ओरिजनल है,जो लिखती हुं दिल से लिखती हूं
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