डॉक्टर साहब ने पकड़ी पौड़ी की नफ़्ज
शायर निदा फाजली का गजल का शेर है /
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूंढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई ।।
यूँ तो पौड़ी में कमाने वाले बेचने वाले लेने वाले नाचने वाले गाने वाले लिखने वाले छपने बोलने वाले सुनने वाले सभी वाले देहरादून वाले होते रहे हैं समय समय मे काल परिस्थियों अनुसार, आजकल सोशल मीडिया में जब देखा पढा पौड़ी की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ की धुरी रहे बच्चों के डॉक्टर बहुगुणा देहरादून बस गए जाते जाते गाड़ी में बैठे बैठे लोग उनसे दवाई लिखाते रहे पर्चो में और डॉक्टर साहब ने भी जाते जाते कह दिया कोई दिक्कत हो तो फोन कर लेना पौड़ी नगर पालिका द्वारा दो दशक पूर्व डॉक्टर साहब को उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए नगरीय सम्मान भी मिला है , दवा की मोताज समझाकर पुड़िया बांधकर पौड़ी स्वास्थ सुविधा देने वाले बहुगुणा जी ने पौड़ी की नफ़्ज पकड़ ही ली । दूसरी तरफ सोशल मीडिया में कुछ पोस्ट उत्तराखंड सिनेमा चार दशक लम्बा सफर तय करने के बाद पलायन के गम्भीर मुद्दों में फ़िल्म देख रहा देहरादून मल्टीप्लेक्स में । जाने को तो पलायन से जोड़ देते हैं पर जो अभी टिके हैं पौड़ी में वो क्यों टिके हैं इस पर चर्चा नही होती है। पौड़ी में कौन टिकता है टिकना सरल या जाना सरल है इन विषयों पर भी बात होनी चाहिए पौड़ी के हवाले से, पौड़ी कोई गांव नही रहा तो पौड़ी देहरादून भी नही तहसील ब्लॉक जिला मुख्यालय मंडल भले हो पर पौड़ी देहरादून न हुआ।
साहित्यकार नरेन्द्र कठैत जी के काव्य रचना हमारि पौड़ी काव्य कृति अबारी तबारी से पौड़ी का कालजयी दर्शन इस तरह होता है।
/जैन एक बारपौड़ी छोड़ी
वू त पौड़ी
दुबारा नी बौडी
पर कबाड़ी बण ग्येनि
मालों माल
हमारा द्वार संगाड
बंठा गागरु तोड़ी फोड़ी
बोलु त बोलु कै मा बोलु पौड़ी।
शैलेंद्र जोशी की कलम से
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