वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए दिल्ली में एक सप्ताह तक वर्क फ्राम होम लागू कर दिया गया है। यह समय दिल्ली से सबक लेने का है, क्योंकि दून के हालात दिल्ली की तर्ज पर निरंतर विकट होते दिख रहे हैं। इस दीपावली की ही बात करें तो यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स बेहद खराब स्थिति के मुताबिक 300 पार हो गया था। पिछली दीपावली पर भी यही स्थिति रही।
दीपावली के दिन जो प्रदूषण कण निकलते हैं, वह कई दिनों तक वायुमंडल में रहते हैं। वह इसलिए की दूनघाटी की भौगोलिक संरचना कटोरे के आकार की है। वायु प्रदूषण के जो भी कण पीएम-10 या पीएम-2.5 निकलते हैं, वह यहीं घूमकर हमें बीमार बनाने का काम करते हैं। दून में वायु प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए एक साल से अधिक समय पहले जो एयर एक्शन प्लान तैयार किया गया था, वह फाइलों में डंप पड़ा है। परिवहन, पुलिस, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नगर निगम, एमडीडीए आदि विभागों के माध्यम से इस दिशा में नियंत्रण के अभी तक कुछ भी ठोस प्रयास नहीं किए जा सके हैं।
राजधानी में वायु स्तर में मौजूद खतरनाक तत्वों का स्तर खतरनाक बना हुआ है। दीपावली के बाद सामान्य तौर पर वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। हालांकि, पिछले कुछ दिनों के दौरान इसमें कुछ कमी आई है, लेकिन अब दिल्ली में खराब हुई हवा के कारण उत्तराखंड पर भी असर पड़ने का खतरा जताया जा रहा है।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कई दिन बाद भी प्रदूषण के स्तर में सुधार नहीं आया है। दीपावली के बाद वायु प्रदूषण और एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) में जो उछाल आया, वह अभी भी बना हुआ है। इसके कारण दून में भी सांस लेने में घुटन का खतरा बढ़ा हुआ है। डॉक्टरों के अनुसार हवा में मौजूद यह खतरनाक तत्व नुकसान पहुंचा सकते हैं। विशेषकर सांस संबंधित समस्याओं वाले मरीजों को इसके कारण परेशान होना पड़ सकता है।
उत्तराखंड पर भी असर पड़ने का खतरा
राजधानी में वायु स्तर में मौजूद खतरनाक तत्वों का स्तर खतरनाक बना हुआ है। दीपावली के बाद सामान्य तौर पर वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। हालांकि, पिछले कुछ दिनों के दौरान इसमें कुछ कमी आई है, लेकिन अब दिल्ली में खराब हुई हवा के कारण उत्तराखंड पर भी असर पड़ने का खतरा जताया जा रहा दिल्ली जैसे खतरे की आहट पर एहतियात की सलाह दे रहे डॉक्टर
अगर ऐसा हुआ तो लोगों को ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ सकती है। अभी एयर पोल्यूशन एपीआई के मुताबिक दून में ओथ्री एक्यूआई 86 बना हुआ है, जो संतोषजनक है। वहीं, पीएम 2.5 का एक्यूआई 449, सवेरे पीएम 10 का एक्यूआई 425 बना हुआ है, जो बेहद खतरनाक स्तर है। इसके अलावा हवा में 65 फीसदी नमी भी बनी हुई है। केवल ओ थ्री एक्यूआई के स्तर में ही संतोषजनक कमी आई है।
छह से सात गुना ज्यादा प्रदूषण
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, दून की आबोहवा में धुएं से जहर घुल रहा है। हवा में पीएम 10 के लिए वार्षिक औसत स्तर 20 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर और 24 घंटे के लिए 50 माइक्रो प्रति घन मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए। पीसीबी के मानकों में यह 60 और 100 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए। जबकि दून में यह छह से सात गुना तक ज्यादा बना हुआ है।
प्रदूषण डालता शरीर पर असर
दिल्ली-एनसीआर के गंभीर स्तर के प्रदूषण के बीच लंबे समय तक खुले में रहने का सीधा असर शरीर पर पड़ता है। श्वसन तंत्र के साथ इससे खून व किडनी तक पर असर पड़ता है। आइए जानते हैं कि अलग-अलग प्रदूषक शरीर के किन अंगों को बीमार करते हैं।
धूल के महीने कण, पीएम 10 व पीएम 2.5 : आकार के आधार पर पीएम 10 व पीएम 2.5 को परिभाषित किया गया है। जिन कणों का आकार 10 माइक्रोमीटर या इससे कम होती है उसे पीएम 10 कहते हैं। जबकि 2.5 माइक्रोमीटर व इससे कम आकार के कण पीएम 2.5 कहलाते हैं। इनमें ज्यादा खतरनाक पीएम 2.5 होता है। यह सांस के सहारे फेफड़ों से होता हुआ खून में मिल जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सदस्य देशों से अब इससे से महीन कणों पीएम 1 का मानक तैयार करने को कह रहा है।
असर
आंख: तेज जलन
नाक: जलन व खुजली
गला: गले में खराश
फेफड़ा: अस्थमा, क्रोनिक ब्रॉकाइटिस, ऊत्तकों को नुकसान
लीवर: ऊतकों को नुकसान
दिल: धमकी की सतह का मोटा पड़ना, रक्त संचरण में बाधा से लेकर कैंसर तक
जहरीली गैस हानिकारक
नाइट्रोजन ऑक्साइड: नाइट्रोजन के ऑक्साइड या नॉक्स पेट्रोल, डीजल व कोयले के जलने से निकलने वाले धुएं से बनते हैं। वातावरण में इनकी ज्यादा मौजूदगी के बीच अगर बारिश हो जाती है तो यह उसे अम्लीय कर देता है।
असर
फेफड़ा: ऊतकों को नुकसान, सांस लेने की क्षमता पर डालता असर
त्वचा: कैंसर
तंत्रिका: तंत्रिका तंत्र पर पड़ता असर
कार्बन मोनो ऑक्साइड: यह जहरीली गैस है। इसका निर्माण गैसोलीन, केरोसिन, तेल, प्रोपेन, कोयला, या लकड़ी के जलने से होता है। इससे लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है।
असर
आंख: धुंधला दिखना
कान: सुनाई न पड़ना
खून: थकान व सरदर्द
श्वसन तंत्र: सीने में दर्द
सल्फर डाईऑक्साइड: बिजली उपकरणों के इस्तेमाल, ईंधन और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले उत्सर्जन से इस गैस का निर्माण होता है।
असर
फेफड़ा: कफ बनना
श्वसन तंत्र: सांस लेने की दर कम होना, सांस का फूलना
सूर्य की किरणों की मौजूदगी में ओजोन का निर्माण
ओजोन: प्रदूषकों के साथ सूर्य की किरणों की मौजूदगी में ओजोन का निर्माण होता है। यह नीली रंग व गंधयुक्त गैस है। इसकी मौजूदगी कार्बनिक कचरे के पास तुलनात्मक रूप से ज्यादा रहती है।
असर
आंख: पानी आना
गला: खराश होना
फेफड़े : अस्थमा
हृदय: क्रोनिक बीमारियां, टीबी के लक्षण संभव
श्वसन तंत्र: संक्रमण, सीने में संकुचन
प्रदूषण खासतौर से इन अंगों को करता है प्रभावित
आंख, नाक, गला, फेफड़ा, श्वसन तंत्र, दिल, यकृत, किडनी, रक्त संचरण, त्वचा,
बचाव के तरीके
खुले में किसी तरह की कोई गतिविधि नहीं करनी चाहिए।
मॉर्निंग वॉक पर नहीं जाना चाहिए।
घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए।
लंबे समय तक गंभीर स्तर के प्रदूषण में रहने पर स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर पड़ता है।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जारी किये आंकड़े
दिवाली से एक हफ्ता पहले दिवाली की रात चार नवंबर दिवाली के एक सप्ताह बाद
शहर एक्यूआई एक्यूआई एक्यूआई
देहरादून 134.5 327 139
ऋषिकेश 115 257 112
हरिद्वार 173 321 182
काशीपुर 108 267 110
हल्द्वानी 110 251 112
रुद्रपुर 104 263 106
एयर क्वालिटी इंडेक्स
00-50 : अच्छा
51-100 : संतोषजनक
101-200 : हल्का खराब
201-300 : बहुत खराब
301-400 : खतरनाक
401 प्लस : बहुत खतरनाक
वर्तमान में उत्तर पश्चिम हवाएं हैं। इससे प्रदूषण यहां दिखाई नहीं दे रहा है। यह सब हवा की दिशा और गति पर निर्भर करता है। मौसम भी शुष्क बना है। यदि दक्षिणी-पश्चिमी की हवाएं चलती होतीं तो दूसरे राज्यों का प्रदूषण यहां दिखाई पड़ता और यहां का प्रदूषण बना रहता।
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