दादा जी की सीख
कथा : संध्या गौर ‘शिवानी
भोपाल मध्य प्रदेश

गोलू बगीचे में खेल रहा था, उसके दादा रामचरन जी बगीचे में काम कर रहे थे । वह गमले की मिट्टी की गुड़ाई कर रहे थे ।गोलू देखकर हंसने लगा…….बोला “दादाजी आप हमेशा बगीचे में आकर मिट्टी से खेलते हो और हम लोगों को मना करते हो कि मिट्टी में मत खेलो……..आप मिट्टी ऊपर नीचे करते रहते हो इससे क्या फायदा होता है।”
दादा जी बोले — “जो मिट्टी ऊपर से दिखती है उसके गुण धीरे धीरे कम होते जाते हैं इसलिए फिर से नीचे की मिट्टी पलट दी जाती है जिससे जो गुण नीचे दब गए हैं वह ऊपर आ जाएं जिससे मिट्टी उपजाऊ बनी रहे।”
गोलू को कुछ भी समझ में नहीं आया तो दादाजी ने बोला -” मिट्टी भी तुम्हारे जैसी ही होती है तुम्हारे अंदर भी बहुत से अच्छे और बुरे गुण दबे हुए हैं यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम कौन से गुणों को ऊपर रखना चाहते हो …….”
आगे बोले “आप अपने शरीर को एक बगीचा मानो और आप उसके माली हो आपके मन में हर दिन विचार के बीच बो रहे हो ज्यादातर समय हमें यह पता नहीं होता कि हम ऐसा क्या कर रहे हैं क्योंकि वह बीज हमारी आदत और सोच पर आधारित होते हैं जैसा बीज हम बोते हैं फसल भी वैसी ही काटनी पड़ती है ।हमारा मन एक उपजाऊ मिट्टी की तरह है जिसमें सभी तरह के बीच उग सकते हैं अगर आपने उस में कांटे बोए हैं तो अंगूर उगने की आशा कैसे कर सकते हो इसलिए यह अनिवार्य है कि आप अपने विचारों पर नियंत्रण रखें आज और अभी से शांति ,खुशी, सही कर्म, सद्भावना और समृद्धि के बीज बोना शुरू कर दें”
दादा जी ने गोलू पर जोर देकर कहा–” विश्वास से उनके बारे में सोचें क्योंकि मन किसी विचार को स्वीकार कर लेता है तो उस पर ही काम करने लगता है।।”
गोलू को अब दादाजी की सारी बातें समझ में आ चुकी थी और समाज में एक और उत्कृष्ट बीज की नस्ल जुड़ चुकी थी।
संध्या गौर ‘शिवानी
भोपाल मध्य प्रदेश
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