**माननीय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी के फेसबुक पेज में चंद्रवदनी मंदिर से जुड़ा पोस्ट पढ़ा। जिसमें लिखा चन्द्रबदनी में बदन गिरने से इसका नाम चन्द्रबदनी पड़ा। पहली बात चन्द्र में वदनी हैं बदनी नही व और ब भेद भी समझने वाली बात है । बदन अरबी भाषा का शब्द है मूलतः इसका प्रयोग बहुत बाद के अरब व्यापरियों के आगमन और मुगल काल के बाद ही यह शब्द आया। और चंद्रवदनी का जिर्क स्कन्दपुराण में भी है। औऱ चन्द्र में वदनी हैं जो संस्कृत का शब्द है बदनी नही है वह। संस्कृत के वदन शब्द से ही वदनी बना है। और वदन या वदनी का अर्थ संस्कृत में रूप है तो कहने आशय है चंद्रमा के समान निर्मल शांत सुन्दर रूप वाली को चन्द्रवदनी कहते हैं। जब चन्द्रकुट पर्वत में पार्वती का चंद्रमा के समान रूप देखकर शिव मोहित हो गये। तब से यह चन्द्रवदनी कहलाई। सिद्धपीठ चन्द्रवदनी का प्राचीन नाम भुवनेश्वरी है इस भुवन यानी जगत शक्ति स्वरूपा ईश्वर को भुवनेश्वरी कहते हैं और दिवंगत पत्रकार एवं लेखक गढगौरव धर्मानन्द उनियाल पथिक जी जिन्होंने उत्तराखण्ड के धार्मिक पर्यटन को विस्तार देने के लिए दर्जनो शोधग्रन्थ लिखे उनका काफी लंबा चौड़ा काम रहा धार्मिक पर्यटन लेखन में। उन्हीं में से एक सिद्धपीठ चंद्रवदनी भी है उस पुस्तक में चन्द्रवदनी नाम कैसे पड़ा विस्तार से लिखा गया है। बदन अरबी भाषा शब्द है और चन्द्र में बदन नही वदन है यह सब विस्तृत लिखा जब भी सरकार सोशल मीडिया या किसी भी पटल या माध्यम से प्रसारित करती है ,जानकारी के लिए ऐसे ग्रन्थो का अध्ययन कर सकती है।** https://fb.watch/ggyH0YF-NC/
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