सांस्कृतिक चिंतन के मनीषियों के कंठो से भी चन्द्रहार गढवाली अन्वार सुशोभित होकर और विस्तार पाएगी

सांस्कृतिक चिंतन के मनीषियों के कंठो से भी चन्द्रहार गढवाली अन्वार सुशोभित होकर और विस्तार पाएगी

प्रकृति के चित्तेरे कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल पर सामाजिक सांस्कृतिक चिंतन अलग अलग संस्थाओं मंचो से होता रहा है। उनके काव्य में गेयता भी रही तो सुरीले कंठो ने संगीत के साथ भी उनको गाया समय समय पर। पर इस बार चन्द्रकुंवर बर्त्वाल नाम किसी संस्था के कार्यक्रम या पुरुस्कार के लिए चर्चा मे नही हैं इस बार चर्चा का विषय है चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं को गढवाली रंगरूप। गढवाली भाषा में ढालने का यह अपने तरह का पहला प्रयास चन्द्रकुंवर जी पर साहित्यकार नरेंद्र कठैत के द्वारा  हुआ  है , चन्द्रकुंवर की गढवाली रूप रंग में रंगी कविताओं के संकलन नाम दिया  है   चन्द्रहार  । और इस चन्द्रहार में हर एक कविता के भाव को मणिमोती नाम दिया है। जिसको कंडी में रख पाठकों को प्रस्तुत किया है उपहार स्वरूप । ये चन्द्रहार की कंडी में भरी एक सौ साठ कविता की मणिमोतियां हमारी भाषा को चमकाती रहेंगे सदा। अनुदित लेखक नरेंद्र कठैत द्वारा सेवाभाव लगाते हुए पितृऋषि पुस्तक प्रकाशक शम्भू प्रसाद बहुगुणा जी, डॉ उमाशंकर सतीश जी , बी मोहन नेगी जी और चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के सचिव डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी को समर्पित की है। चन्द्रहार की पहली कंडी में इक्कावन मणि मोती हैं कविता संसार संकलन अर संपादन डॉ उमाशंकर सतीश से लिया गया है। चन्द्रहार की दूसरी कंडी में पयस्विनी पुस्तक प्रकाशक शम्भू प्रसाद बहुगुणा से सैंतालीस मणिमोतियों को कंडी मे भरा है, चन्द्रहार की तीसरी कंडी मेघ -नंदिनी पुस्तक प्रकाशक शम्भू प्रसाद बहुगुणा से बयालिस मणिमोती कंडी में चमक रहे हैं और चन्द्रहार की चौथी कंडी में कंकर पत्थर पुस्तक प्रकाशक शम्भू प्रसाद बहुगुणा से बीस मणिमोती रखे हैं। इस किताब आवरण चित्र बनाया प्रसिद्ध चित्रकार सुरेश लाल जी ने इतना सजीव चित्र उकेरा है जैसे चन्द्रकुंवर बर्त्वाल जी के साक्षात दर्शन हो गए हों । पुस्तक की भूमिका चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के सचिव डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी ने की है पुस्तक के अंत मे चन्द्रहार से जुड़ी बी मोहन जी के कविता पोस्टर को भी स्थान दिया गया है। पुस्तक प्रकाशित हुई रावत डिजिटल बुक हाउस से। गढवाली पाठकों और सांस्कृतिक चिंतन के मनीषियों के कंठो से भी चन्द्रहार गढवाली अन्वार सुशोभित होकर और विस्तार पाएगी ये साहित्यिक साधना।

चन्द्रहार गढवाली अनुदित कृति नरेंद्र कठैत

 

पुस्तक विमर्श : शैलेंद्र जोशी

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