आज राजनीति में भक्तदर्शन क्यों नही होते ।
भक्तदर्शन जिनका जन्म तब हुआ जब इंग्लैंड की गद्दी में सम्राट जॉर्ज पंचम का राज्यारोहण हो रहा था । पिता ने नाम रखा राजदर्शन। किंतु भक्तदर्शन को अपने नाम से गुलामी की जकड़न महसूस होने लगी तो उन्होने अपना नाम राजदर्शन से बदलकर भक्तदर्शन कर दिया। भक्तदर्शन जो गढ़वाल संसदीय सीट के 4 बार लोकप्रिय सांसद रहे । देश के पहले शिक्षा मंत्री रहे केंद्रीय विद्यालयों स्थापना से लेकर देशभर में केंद्रीय विद्यालय खुलवाने उनका अहम योगदान रहा। यूँ तो उनके राजनीतिक समाजिक कार्यो फेहरिस्त बहुत लंबी है अपने राजनीति की स्वर्णिम काल की यौवन अवस्था में राजनीति सन्यास ले लिया। अपने केंद्रीय नेतृत्व के समझाने पर भी उन्होंने अपना निर्णय नही बदला और राजनीति छोड़ दी। कहा मैं ही लगातार पद में बना रहूँगा तो नये लोगों को कैसे मौका मिलेगा और सबसे रोचक बात रही एक सांसद और केंद्र सरकार का एक मंत्री ने राजनीति छोड़ कुलपति का पद स्वीकार किया कानपुर विश्वविद्यालय में और शोध कार्य किया पुस्तकें लिखी और पुस्तको में अपने पार्टी या राष्ट्रीय नेतृत्व या किसी अंतराष्ट्रीय ग्लैमर छवि की चरण वंदना या अभिनंदन में नही बल्कि अपने पहाड़ की के लोकल हीरोज औऱ पहाड़ दिवंगत विभूतियों पर शोध कार्य कर उनके सम्मान में ग्रन्थ लिखे । 5 साल कुलपति रहने के बाद किसी एक दिन छात्र संघ द्वारा कुछ कारणवश भक्तदर्शन जी के लिए नारेबाजी हुई तो उन्होंने तत्काल इस्तीफा दे दिया अगर मेरे काम से अब छात्र खुश नही है पद में बना रहना ठीक नही। आज भक्तदर्शन जैसे छवि कहाँ मिलती इसके विपरीत सारा माहौल है आज के समय मे।कम से कम उत्तराखण्ड नेताओं को तो भक्तदर्शन जैसा दर्शन रखना चाहिए तुम उनके राजनीतिक वंशज हो।
शैलेन्द्र जोशी की कलम से
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भक्तदर्शन जीवनदर्शन ऐसे व्यक्तित्व कृतित्व से सीखकर एक स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सकती है।
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