February 11, 2025

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करुणाशंकर उपाध्याय को आचार्य रामचंद्र शुक्ल शिरोमणि साहित्य सम्मान

*करुणाशंकर उपाध्याय को आचार्य रामचंद्र शुक्ल शिरोमणि साहित्य सम्मान*

दिनांक 24 सितंबर 2023 को प्रख्यात आलोचक प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्‍याय निर्मला स्मृति साहित्यिक समिति चरखी-दादरी, हरियाणा द्वारा आचार्य रामचंद्र शुक्ल शिरोमणि साहित्य सम्मान से अलंकृत किए गए। यह सम्मान डाॅ.उपाध्याय को उत्कृष्ट आलोचनात्मक लेखन के लिए दिया गया। इस अवसर पर समिति के संयोजक डाॅ. अशोक कुमार मंगलेश ने कहा कि यह संस्था का सौभाग्य है कि 21 वीं शती के आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहे जाने वाले करुणाशंकर उपाध्याय को यह सम्मान दिया जा रहा है। इससे संस्था स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्‍ठ प्रोफेसर डाॅ.पूरनचंद टंडन, प्रोफेसर नरेश मिश्र,डाॅ.अशोक कुमार मंगलेश और डा.दीपक पाण्डेय के हाथों यह सम्मान दिया गया।

ध्यातव्य है कि मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर और आलोचक डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय इस समय हिंदी के सबसे चर्चित आलोचक हैं। आप भारतीय और पाश्चात्य काव्य शास्त्र के अधिकारी विद्वान हैं। आप आलोचना की अद्यतन पद्धतियों से भी पूर्णत: विज्ञ हैं।आप भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में नूतन प्रतिमानों का निर्माण करते हैं।ध्यातव्य है कि इनकी पुस्तक’ मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ ‘ पर आयोजित परिचर्चा के अवसर पर शीर्ष साहित्यकार श्रीमती चित्रामुद्गल ने डाॅ. उपाध्याय को आज का सबसे बड़ा आलोचक कहा था।तदुपरांत हिंदी साहित्य भारती द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने इन्हें वर्तमान शती का आचार्य रामचंद्र शुक्ल और डाॅ.अरविंद द्विवेदी ने उपाध्याय को अज्ञेय के बाद हिंदी का सबसे बड़ा अंत: अनुशासनिक आलोचक कहा था। इनके आलोचनात्मक लेखन पर ममता यादव ने जे.जे.टी. विश्वविद्यालय, झुंझनू, राजस्थान से पीएच.डी. की उपाधि भी प्राप्त की है।
डाॅ.उपाध्याय की अब तक 20 मौलिक आलोचनात्मक पुस्तकें और 12 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।गत वर्ष इनका आलोचना ग्रंथ ‘ जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम ‘ प्रकाशित हुआ है जो इस समय विद्वानों के मध्य मीमांसा का विषय बना हुआ है। इस पर अब तक 21 संगोष्ठियां आयोजित हो चुकी हैं। ऐसा बहुत कम होता है जब कोई आलोचना ग्रंथ हिंदी जगत का इस प्रकार स्नेहभाजन बनता है। इसे हिंदी आलोचना में नए युग का सूत्रपात करने वाला ग्रंथ कहा जा रहा है। यह आलोचना ग्रंथ आलोचना विधा के खोएहुए गौरव को पुन: प्रतिष्ठित कर रहा है।

प्रोफेसर उपाध्याय के राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 400 के आस-पास आलेख व शोध-लेख प्रकाशित हुए हैं। इनके कुशल निर्देशन में अब तक 35 शोधार्थी पी.एच.डी. और 55 छात्र एम.फिल. कर चुके हैं। इसके पूर्व भी प्रोफेसर उपाध्याय को राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो दर्जन से अधिक सम्मान – पुरस्कार मिल चुके हैं।संयोगवश गत वर्ष डाॅ.उपाध्याय को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का भी आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान प्राप्त हुआ है। इस वर्ष इन्हें अमलतास सृजन सम्मान व दुष्यंत सम्मान भी मिला है।

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