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प्रेम- रंग
प्रेम- रंग प्रेम का रंग मुझ परकुछ यूँ चढ़ने लगा |मन बिखरने लगा,तन संवरने लगा | जाने कैसे ?लोगों को पता चल गया |उन्हें अखरने लगा,मन भी डरने लगा | सोचती हूँ!तुमसे कैसे कहूँ?ज़िन्दगी का फलसफाअब बदल सा गया |मन दूसरों के मन पढ़ने लगा,बातें भी कुछ समझने लगा | लगता है!यह सब तेरा ही […]