. पुलवामा शहादत
करना माफ तू मुझको प्रिये, मैं वादा पूरा कर न सका।
प्रेम दिवस पर आ कर, तुझको अंको में भर न सका।।
निकला तो था आने को पर, कुछ पिल्लों ने घेर लिया।
पीठ के पीछे हुये वार को, हमने सीनो पर झेल लिया।।
पुलवामा के लेथपोरा से, अपना काफिला निकला था।
साथ मेरे थे साथी मेरे, एक उनमे से तो नया नवेला था।।
पंकज त्रिपाठी नाम था जिसका, हुई शादी नई नई थी।
सुबह फोन पर बतलाया कि, मेरी छुट्टी मंज़ूर हुई थी।।
तिलक राज दुजा साथी, जो बहनो का था राजा भईया।
कांगड़े वाली माता का भक्त, भारत माता का रखवईया।।
अजित कुमार आजाद हृदय से, आज़ादी का मतवाला।
प्रदीप सिंह बापू की लाठि, श्याम बाबू माँ का रखवाला।।
रमेश यादव और अवधेश कुमार, वाराणसी व चन्दौली से।
मेरा प्रिय अमित कुमार व भैया प्रदीप कुमार शामली से।।
हेडकांस्टेबल रामवकील, अपनी बिधवा माँ का पूत चहेता।
अपने घर कमाने वाला, विजय कुमार मौर्या था एकलौता।।
पांच भाई बहनों में अश्वनी काओची, जो सबसे छोटा था।
संजय सिन्हा तो अभी अभी घर, छुट्टी काट कर लौटा था।।
कुलविंदर को मकान कि मरम्मत, बबलू को पेंट करानी थी।
माँ से जो किया था वादा, संता कुमार को वही निभानी थी।।
उत्तराखंड का वीरेंद्र, विजय सोरेंग, झारखंड का लाल गया।
नितिन शिवाजी के बच्चो को, उसकी कमी हाय साल गया।।
ताजगंज के कौशल रावत, जयपुर के वीर रोहितास लांबा थे।
सुखजिंदर घर जन्मा बेटा, सी शिवचंद्रन बनने वाले पापा थे।।
किसे पता था महेश कुमार अबकी, आएगा लिपट तिरंगे में।
अभी अभी तो बात हुई थी, बोला अत्रि मनिंदर हूँ मैं चंगे में।।
चार संतानों का पिता हेमराज, के बच्चों को कौन निवाला दे।
कांपती हाथो से कैसे पिता, जयमाल को विदाई कि माला दे।।
अहमद नसीर, बेहरा मनोज, सुब्रमण्यम जी तुमको है नमन।
सुदीप बिश्वास, मनेश्वर सुमातारी, तुम्हे खो के रोता है चमन।।
जीत राम, गुरू एच, भागीरथ, प्रसन्ना साहू, रहोगे याद सदा।
संजय, मोहन, रतन, नारायण, तुम पर ये सारा वतन फिदा।।
अगर निर्दयी तुम होते न कायर, तो जरा सामने से आ जाते।
माँ तेरी न होती लज्जित, जो न दूध लोमड़ी का पी कर आते।।
अपने बाजू के कौशल से, तुम्हारी असली औकात दिखा देते।
ऐसे घात लगाने वाले वहसी कि, कैसी दोगली जात बता देते।।
40 शेर जो सो गए तो न समझो, दहाड़ इनका खामोश हुआ।
इनके खून के कतरे कतरे से, हर बच्चा बच्चा सरफरोश हुआ।।
आगाज़ तो तुमने देख लिया, अंजाम तुम्हारा फिर क्या होगा।
पीठ पर जो मारे हो खंज़र, उसका तेरे सिने पर निशां होगा।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १४/०२/२०२१)
मेरा परिचय◆
स्वयं के चित्त से रहूँ आनंदित
छल कपट द्वेष का भान नही
‘पाण्डेय चिदानन्द’ नाम मेरा
मुझमें होशियारी का ज्ञान नही
सेवाकर्मी सैन्य धर्म का
कोई इसके सिवा संज्ञान नही
★सामान्य परिचय★
नाम:- पाण्डेय चिदानन्द
साहित्यिक नाम:- “चिद्रूप”
व्यवसाय:- भूतपूर्व सैनिक (भारतीय सेना)
पता:-
स्थायी निवास:-
ज़िला – गाज़ीपुर उत्तरप्रदेश
पिन – २३२३२८
अस्थायी निवास:-
वाराणासी उत्तर प्रदेश
पिन – २२१००३

समस्त शहीदों की शहादत को सहस्त्रो बार नमन
🙏🙏जय हिंद💐🇮🇳💐जय भारत🙏🙏