गढ़वाल मंडल में फुलदेई पर्व फूल संग्राद नाम से मनाया जाना चाहिए ।उत्तराखंड में शब्दों का प्रसार धरातलीय आधार में होना चाहिए।

गढ़वाल मंडल में फुलदेई पर्व फूल संग्राद नाम से मनाया जाना चाहिए ।उत्तराखंड में शब्दों का प्रसार धरातलीय आधार में होना चाहिए।

बहुत हर्ष का विषय है उत्तराखंड बार त्यौहारों को सामाजिक संस्थाओं की सांस्कृतिक चेतना के साथ उनका विस्तार भी हो रहा और संस्थाओ की पहल में सरकार भी संस्कृति जैसे विषयों मे कार्य कर रही है। जैसे आपको पता ही 14 मार्च को सरकार फूलदेई पर्व मना रही है। स्वागत योग्य पहल है। इस बार जिला गढ़वाल में सभी विद्यालयों में फूलदेई पर्व मनाने के आदेश भी जारी हों गए हैं । देहरादून से लेकर गढ़वाल /कुमाऊं मंडल तक कई सामाजिक संस्थाएं भी अपने स्तर में फुलदेई पर्व मना रही हैं। उत्तराखण्डी समाज में फूलदेई पर्व एक ऐसा ही द्वार पूजा पर्व है, जो चैत्र माह की संक्रान्ति को द्वारपूजा के साथ प्रारम्भ होता है. गढ़वाल क्षेत्र में तो यह पूरे माह चलता है और गढ़वाल में इसको फूल संग्राद के नाम से जाना जाता और जब कि कुमाऊं में सांकेतिक रूप से केवल संक्रान्ति के दिन ही मनाने की परम्परा है. पर सामाजिक संस्थाओं और सरकारों इन संस्कृतिक चिंतन के साथ शब्द सम्पदा विषय में मनन करना चाहिए अगर गढ़वाल मंडल में फूलदेई पर्व को फूल संग्राद नाम से मनाया जाता है तो समाजिक संस्थाओ /सरकारों को उसी नाम गढ़वाल  में मनाया जाना चाहिए । साथ ही कुमाऊँ मंडल फूलदेई नाम से मनाया जाना चाहिए । क्योंकि संस्कृति  के साथ  शब्द सम्पदा का महत्व भी लोक में हैं अब कोई गढ़वाल मंडल गांव का बच्चा घर मे फूल संग्राद मना रहा है तो अगर उसको स्कूल में बताया जाए बच्चों आज फुलदेई पर्व है तो बालमन में हम उसके धरातलीय लोक शब्द सम्पदा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। साहित्यकार नरेंद्र कठैत  फूल  संगरांद शब्द को समाज से  इस तरह  हटाने से गहरा चिंतन  व्यक्त करते हैं ऐसे में तो फूल संगरांद कागजों में ही मिलेगा अगर यूँही और इसी तरह सांस्कृतिक चेतना समाजिक संगठनो और सरकारों की रही तो बच्चे कैसे जुड़ेंगे अपने शब्दों के साथ ।

 

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