अच्छी हिंदी : पांडुलिपि, पांडुलेख, पृष्ठ और पन्ना
– कमलेश कमल
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पांडुलेख अथवा पांडुलिपि शब्द अपने मूल में लेखन के आरंभिक दौर से जुड़ा है। ‘पांडु’ शब्द का अर्थ, पीला, खड़िया अथवा मिट्टी, सफ़ेद आदि है। ‘पाण्डुमृत्तिका’ सफ़ेद अथवा पीली मिट्टी को कहा जाता है। प्राचीन काल में जब कुछ महत्त्वपूर्ण लिखना होता था, तो सर्वप्रथम खड़िया से अथवा किसी विशेष मिट्टी से ज़मीन पर अथवा किसी भी सतह पर लिख लेते थे। इसे घटा-बढ़ा, काट-छाँट अथवा ठीक कर लेने के पश्चात् ही इसे ताड़पत्र, भोजपत्र आदि पर लिखकर नत्थी कर लेते थे अथवा ग्रंथित कर लेते थे, जिससे यह ‘ग्रंथ’ बन जाता था। ग्रंथ बनने के पूर्व की अवस्था में खड़िया आदि से लिखा गया लेख ‘पांडुलेख’ कहलाता था। बाद में एक शब्द आया– ‘हस्तलेख’, जिसका अर्थ था– ‘प्रकाशन से पूर्व की हस्तलिखित सामग्री’।
ऐसे तार्किक रूप से देखें, तो ‘पांडुलेख’ भी भले ही खड़िया आदि की सहायता से लिखे जाते थे; थे तो हस्तलेख ही। ‘पांडुलेख’ में खड़िया आदि का प्रयोग था, तो ‘हस्तलेख’ में स्याही का उपयोग था; परंतु लिखने की प्रक्रिया तो हाथ से ही संपन्न होती थी। अस्तु, आज भी ग्रंथ आदि प्रकाशित होने के पूर्व पांडुलेख अथवा पांडुलिपि कहलाता है, हालाँकि इस पर विमर्श की आवश्यकता है। हाँ, इन दोनों विकल्पों(पांडुलेख एवं पांडुलिपि) में ‘पांडुलेख’ शब्द अधिक उचित है।
‘पांडुलेख’ पर चर्चा के क्रम में यह चर्चा भी समीचीन होगी कि वर्तमान समय का ‘पन्ना’ अपने उद्गम में ‘पांडुलिपि’ जितना ही पुराना है। हमने ‘ग्रंथ’ शब्द की चर्चा में देखा कि पहले वृक्ष के पत्तों आदि पर लिखकर उसे नत्थी कर लेते थे, नद्ध कर लेते थे, ग्रंथित कर लेते थे। ‘पन्ना’ शब्द अपने मूल में इसी से जुड़ा है। पत्ता संस्कृत में ‘पत्र’, ‘पर्ण’ अथवा ‘पर्णम्’ है। पर्णम से पालि भाषा में ‘पण्णअ’ बना जो प्राकृत में ‘पण्णआ’ बन गया और आगे अपभ्रंश काल में यह ‘पन्ना’ बन गया। इसी तरह, ‘पत्र’ शब्द की अगर चर्चा करें, तो यह ‘पत्’ धातु से बना है। हम जानते हैं कि ‘पत्’ धातु में गति करने और गिरने का भाव है। पतन, पतित आदि शब्दों में गिरने का भाव अगर स्पष्ट है, तो इस पर भी ध्यान दें कि ‘पत्र’ अथवा ‘पत्ता’ गिरता ही गिरता है।
‘पन्ना’ के लिए प्रयुक्त ‘पृष्ठ’ शब्द का इतिहास कितना पुराना है, यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, परंतु इस शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के ‘पृष्ठम्’ शब्द से है। ‘पृष्ठम्’ कहते हैं सतह को, पिछली सतह को, पिछले हिस्से को। ध्यान दें कि ‘पृष्ठम्’ से बने ‘पीठ’ शब्द में यही भाव है। प्रतीत होता है कि लेखन की शुरुआत होने के बाद कागज़, गत्ते अथवा पत्ते की सतह को ‘पृष्ठ’ कहा जाने लगा और यह आज भी वही अर्थ देता है।
आपका ही,
कमल
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