गढ़वालीभाषा के लेखन स्तर में मंथन जरूरी

गढ़वाल विवि जब गढ़वाल भाषा के इस सम्मान पत्र में गढ़वाली के शब्दों में इतनी व्याकरण कमियां दिखी हैं सच में महसूस होता है गढ़वाली भाषा विश्वविद्यालय स्तर में इस तरह की कमियां दिखेंगी तो भाषा का स्तर आम जनमानस में कैसा होगा। गढ़वाली शब्द नही सब्द लिखा बाकी कै और देश की जगह कतगा हौर देस आयेगा आखिरी में अफु बि गौरवान्वित छ में छ जगह च आएगा। गढ़वाली समृद्ध अवाज और गीतकार के सम्मान पत्र में इस तरह वर्तनी त्रुटि थोड़ी अखरती है विवि स्तर की भाषा में। पर उम्मीद है नेगी जी के गीतों को सुनकर और गढ़वाली साहित्यकारों पुस्तक पढ़कर आने समय मे इस तरह त्रुटियों दूर किया जा सकता है। वैसे गढ़वाली में वर्तमान में ज्यादात्तर कवियों और वाचिक परम्परा के साहित्यकारों के लिखित दस्तावेजों में कमियां आती है भाषा स्तर में जब जब कवि , साहित्यकारों की वर्तनी में एक रूपता नही दिखती वर्तनी में कई तरह का व्याकरण दोष है तो भाषा नई पीढ़ी और समाज पढ़ाई जायेगी। भाषा के लेखन स्तर में मंथन जरूरी है।
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