उत्तराखंड संस्कृति कला इतिहास का ज्ञानी पण्डित डॉ रणवीर सिंह चौहान अब स्मृतियों में शेष
स्याळी बसंती स्याळी गीत को रचने वाले डॉ रणवीर सिंह चौहान अब स्मृतियों संग शेष रहेंगे अपनी रचनाधर्मिता के साथ ।डॉ रणवीर सिंह चौहान एक इतिहासकार , पुरातत्वविद, चित्रकार , रंगकर्मी , नाटककार, फिल्मकार, लेखक , कवि , गीतकार , संगीतकार , गायक, भाषाविद , सामाजिक कार्यकर्ता, विभिन्न आयामो समाज से जुड़े रहेडॉ रणवीर सिंह चौहान ने उत्तराखंड में विद्यालय रंगारंग कार्यक्रमों से लेकर गढ़देवा विश्वविद्यालय स्तर के वार्षिकोत्सव , रामलीला , रंगमंच में एक लेखक, संगीतकार , गायक ,गीतकार, लेखक, रंगकर्मी के साथ स्टेज के हर शिल्प में उनकी महारथ रही आभूषण, मेकप, वस्त्र विन्यास उत्तराखंड में एक कला संस्कार देने वाला ज्ञानी पण्डित का नाम है डॉ रणवीर सिंह चौहान । रणवीर चौहान वही नाम जिसने झंकार जैसे सांस्कृतिक संस्था अपने गीत और शिल्प से सींचा झंकार वही ग्रुप है जिसने लैंसडाउन और गढ़वाल के विभिन्न स्थानों से लेकर नवाबों के शहर लखनऊ और पंजाब चण्डीगढ़ देशभर के कही जगहों में उत्तराखंड की संस्कृति का परचम लहराया। डॉ रणवीर सिंह चौहान की झंकार वही झंकार संस्था जिसने गढगौरव नरेंद्र सिंह नेगी के शुरुआत में सुर लय ताल शब्द को विस्तार मिला देशभर के मंचो में। इसी झंकार ने प्रसिद्ध हास्य सम्राट घन्नानन्द (घन्ना भाई) को भी मंच मिला जो डॉ रणवीर सिंह चौहान लिखा और संगीतबद्ध किया लोकप्रिय गीत स्याळी हे बसंती स्याळी गढगौरव नरेंद्र सिंह नेगी और ऑल इंडिया रेडियो की पहली महिला कम्पोजर पदमश्री डॉ माधुरी बड़थ्वाल के युगल स्वरों में भी गुंजा। ऐसी शख्सियत श्रद्धाजंलि अब यादे ही शेष हैं ।
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