यह कविता सिर्फ एक महारानी शौर्य गाथा भर नही है अपितु पुरुषवादी समाज में नारी की कार्य कुशलता का दर्शन है।

देहरा से गंगनहर कर्णावती का जीवन दर्शन
राजाओं का राज था
रानी कर्णावती का
राज चलाना महज
एक इत्तिफाक था ।
राजा के मर जाने में
सती हो जाती थी जब रानियां
राज महलों में नारी जीवन की
नही थी कोई विशेष कहानियां
था घुटन भरा जीवन बंद महलो में रानियों का
चौखट तक थे कदम आराम था कहानियों का
कोई उड़ान न थी जीवन की
इस हाल में भी जौहर दिखला गई
अपनी बुद्धि बल विवेक से
ऐसी नारियां इतिहास रचना सिखला गई
रानी थी राजा महीपतिशाह की
बस यही पहचान न थी कर्णावती
राजा के मर जाने पर
राज गद्दी में
अबोध पृथ्वी बैठाया
राजकाज से अंजान थी
बालक की पालक बन
कुशल राज चलाया
राजपाठ का पूरा जिम्मा
कर्णावती ने निभाया
देश दुनिया के राजाओं ने
रानी का लोहा माना था
कार्यकुशलता से कर्णावती ने
नारी को सशक्तिकरण समझाया
कूटनीति से दुश्मन की
सेना को धूल चटाई थी
युद्ध में रानी ने
मुगलों की नाक कटाई थी
रानी कर्णावती जग में
नाक कटी रानी कहलाई
कर्णपुर बसाया था
रानी ने दून घाटी में
राजपुर रिस्पना नदी में
पूरब पश्चिम नहर बनाई
नहर की आवो हवा से
खेती दून घाटी की लहराई
देहरा नहर देख अंग्रेजों ने
नहरों की तकनीक अपनायी
हरिद्वार से कानपुर तक
गंगनहर बनाई
उत्तर भारत की खेती
गंग नहर ने लहराई
सिंचाई हो या लड़ाई
रानी कर्णावती ने हर जगह
अपनी दूरदर्शिता दिखाई
गढ़वाल की कर्णावती ने एक नई राह
नहरों से देश की कृषि को सुझाई
देहरा से गंगनहर
बस एक नहर
भर की कहानी नही
मर्दो के राज में
औरत की वीरगाथा है
राजाओं के राज में थी
एक रानी ऐसी भी
रचना : शैलेंद्र जोशी
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