February 8, 2025

Ajayshri Times

सामाजिक सरोकारों की एक पहल

देहरादून का ”कनॉट प्लेस”, अब अतीत के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगा.

देहरादून. अपने आप में एक सदी के इतिहास का गवाह रहा देहरादून का ”कनॉट प्लेस”, अब अतीत के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगा. 14 सितम्बर को इस बिल्डिंग को खाली करवाने के साथ ही इसे जमींदोज करने की करवाई भी शुरू होगी. दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस की तर्ज पर बना देहरादून का ”कनॉट प्लेस” व्यवसायिक एवं व्यापारिक केन्द्र है. जो आज भी देहरादून के बैंकर्स रहे सेठ मनसाराम की कहानी बताती है.

ब्रिटिश काल में देहरादून के धनी और बैंकर्स रहे सेठ मनसाराम, जिन्होंने देहरादून में कई इमारतों का निर्माण किया उसमें से कनॉट प्लेस भी एक है. इस ऐतिहासिक इमारत को बनाने का सपना, सेठ मनसाराम ने दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस की बिल्डिंगों की डिजायन से प्रभावित होकर तैयार किया था. जिसके लिए मनसाराम ने बॉम्बे से आर्किटेक को बुलाया था, और इसके निर्माण के लिए सेठ मनसाराम ने भारत इन्स्योरेन्स से एक लाख 25 हजार रूपये लोन लिया था. 1930 से 40 के दशक में देहरादून की ये पहली इमारत थी, जिसको तीन मंजिला तैयार किया गया था. इसे पकिस्तान से आने वाले लोगों के लिए बनाया गया था, ताकि वे यहां आकर अपना बिजनेस यहां कर सकें.लोन नहीं चुका पाए सेठ मनसाराम

 

देहरादून के चकराता रोड पर कनॉट प्लेस स्थित एलआईसी बिल्डिंग को खाली कराने के नोटिस के बाद हड़कंप की स्थिति है। एलआईसी ने कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए बिल्डिंग को खाली कराने के लिए पुलिस-प्रशासन की मदद मांगी है। पहले चरण में 14 संपत्तियां (आवास और दुकानें) खाली कराई जानी हैं। पुलिस ने 14 सितंबर तक का अल्टीमेटम दिया है।14 सितंबर से खाली होगी बिल्डिंग

बिल्डिंग की मरम्मत न होने से वह जर्जर हो चुकी है कभी भी धराशाही हो सकती है. वहीं इस बिल्डिंग में रहने वाले और अदालती कार्रवाई में स्थानीय लोगों कहना है कि इस ऐतिहासिक भवन को गिराने के लिए करार देने के लिए कई फर्जी रिपोर्टें भी लगी है. जिसकी वजह से इस ऐतिहासिक बिल्डिंग को धराशाही करने की बात सामने आ रही है. वहीं एसएसपी दलीप सिंह कुंवर का कहना है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट से आदेश जारी हुए हैं. जिसपर जल्द कार्रवाई की जाएगी। 14 सितम्बर से बिल्डिंग को खली करवाया जाएगा.

पिछले दिनों से एलआईसी के अधिकारियों ने जिला प्रशासन और पुलिस के अफसरों से मुलाकात की। इसमें प्रक्रिया पूरी कराने की बात कही। इसके बाद जिला प्रशासन ने एक मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। वहीं, पुलिस ने पर्याप्त पुलिस फोर्स उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। इधर, एलआईसी ने बिल्डिंग में नोटिस चस्पा कर दिए। इसका दुकानदार विरोध कर रहे हैं।

एसपी सिटी सरिता डोभाल का कहना है कि एलआईसी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट से एक आदेश आया है। इसको एलआईसी ने जिला प्रशासन को भी उपलब्ध कराया है। प्रशासन ने पुलिस फोर्स उपलब्ध कराने के लिए कहा है। फोर्स उपलब्ध कराई जाएगी। उधर, सीओ सिटी नरेंद्र पंत ने बताया कि प्रशासन की ओर से मजिस्ट्रेट नियुक्त किए गए हैं। प्रथम चरण में 14 प्रॉपर्टी खाली कराई जानी हैं।

लोग बोले, पाक से आकर बसे, अब कहां जाएं
दुकानें और आवास खाली कराने के नोटिस के बाद से लोगों में बैचेनी है। उनके कारोबार यहां पर है और परिवार का गुजारा चलता है। कुछ परिवार ऐसे हैं, जो पाक से यहां आए। आर्मी ट्रेडिंग के नाम से दुकान चलाने वाले अधिवक्ता देवेंद्र सिंह कहा कि यहां पर 150 दुकान और फ्लैट हैं। गिरासु भवन की गलत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। कुछ हिस्सों के जर्जर होने का मामला था।

उसे पूरी बिल्डिंग से जोड़कर भ्रम फैलाया जा रहा है। सैलून संचालक इलियास अहमद ने बताया कि उन्हें यहां करीब 60 साल हो गए हैं। किराया कोर्ट में जमा किया जा रहा है। कोर्ट का फैसला एक संपत्ति को लेकर है, लेकिन वह पूरी बिल्डिंग को खाली कराना चाहते हैं। कार्रवाई का विरोध सभी दुकानदार करेंगे। बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए भीमसेन विरमानी, बुजुर्ग एसजे कोहली भी यहां कारोबार कर जीवन यापन कर रहे हैं।
वहीं इस इमारत में करीब 82 साल से दुकान चला रहे भीम सेन बताते हें कि 24 रूपये किराये पर उनके पिता ने मनसाराम से दुकान किराए पर ली थी. तब से ये दुकान उनके पास है, लेकिन LIC उनको बहार करने के लिए हर कोशिशें कर रही है. मुश्किल यह है कि इस उम्र में वो कहां जाएं. इस बिल्डिंग में भीम सेन जैसे कई लोग रह रहे हैं जो अपनी रोजी रोटी चला रहें हैं. 40 के दशक में तैयार हुए इस ऐतिहासिक इमारत में 150 से अधिक भवन और 70 से ज्यादा दुकाने बनायी गयी थी. इस इमारत को देहरादून में एक व्यापारिक और व्यवसायिक केंद्र बनाने की मंशा से सेठ मनसाराम ने तैयार किया था, लेकिन बिल्डिंग तैयार होने के बाद सेठ मनसाराम भारत इन्स्योरेन्स का 1 लाख 25 हजार का लोन वापस नहीं कर पाए और बैंक करप्ट हो गये. जिसके बाद उनकी कई सम्पति को भारत इन्स्योरेंश कम्पनी ने अपने कब्जे में ले ली, जिसमे देहरादून के कनॉट प्लेस भी शामिल है, जो बाद में LIC के पास चले गयी और तब से अब तक इमारत में रहने वाले लोगों और LIC के बीच लड़ाई चल रही है.

2018 में भी चस्पा हुए थे खाली कराने के नोटिस
व्यापारियों ने बताया कि अंग्रेजों के जमाने के बड़े बैंकर्स सेठ मनसाराम ने इस बिल्डिंग का निर्माण कराया था। वह दिवालिया हो गए तो भारत इंश्योरेंस ने संपत्ति को जब्त कर लिया। इसके बाद संपत्ति एलआईसी के पास आ गई। चूंकि किरायेदार मनसाराम के समय से रह रहे थे तो यथास्थिति चलती रही। एलआईसी का तर्क है कि लोग मामूली किराया दे रहे हैं। मामला कोर्ट में भी चल रहा है। 2018 में भी एलआईसी ने बिल्डिंग खाली कराने के लिए नोटिस चस्पा किए थे।

बिल्डिंग ध्वस्तीकरण को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं
कनॉट प्लेस शहर का व्यवसायिक केंद्र है। कनॉट प्लेस की यह बिल्डिंग खाली कराने के बाद ध्वस्त होगी या नहीं, इसे लेकर स्पष्ट स्थिति नहीं है। पुलिस ने इस संबंध में जानकारी से इनकार किया है। वहीं एलआईसी के अधिकारी भी इस संबंध में कुछ भी कहने से बच रहे हैं। प्रशासन के अधिकारी भी इस संबंध में स्थिति स्पष्ट नहीं कर सके। चर्चा है कि खाली कराने के बाद बिल्डिंग को धवस्त किया जा सकता है। हालांकि आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी।

 

 

जल्द जमींदोज होगा देहरादून का ‘कनॉट प्लेस’, पाकिस्तानी व्यापारियों के लिए बनाई गई थी बिल्डिंग
Dehradun News: कनॉट प्लेस के नाम से मशहूर इमारत को 14 सितंबर से खाली करवाया जाएगा।
Dehradun News: कनॉट प्लेस के नाम से मशहूर इमारत को 14 सितंबर से खाली करवाया जाएगा।
Dehradun Connaught Place: ब्रिटिश काल में देहरादून के धनी और बैंकर्स रहे सेठ मनसाराम, जिन्होंने देहरादून में कई इमारतों का निर्माण किया उसमें से कनॉट प्लेस भी एक है. इस ऐतिहासिक इमारत को बनाने का सपना, सेठ मनसाराम ने दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस की बिल्डिंगों की डिजायन से प्रभावित होकर तैयार किया था. जिसके लिए मनसाराम ने बॉम्बे से आर्किटेक को बुलाया था, और इसके निर्माण के लिए सेठ मनसाराम ने भारत इन्स्योरेन्स से एक लाख 25 हजार रूपये लोन लिया था.

देहरादून. अपने आप में एक सदी के इतिहास का गवाह रहा देहरादून का ”कनॉट प्लेस”, अब अतीत के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगा. 14 सितम्बर को इस बिल्डिंग को खाली करवाने के साथ ही इसे जमींदोज करने की करवाई भी शुरू होगी. दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस की तर्ज पर बना देहरादून का ”कनॉट प्लेस” व्यवसायिक एवं व्यापारिक केन्द्र है. जो आज भी देहरादून के बैंकर्स रहे सेठ मनसाराम की कहानी बताती है.

ब्रिटिश काल में देहरादून के धनी और बैंकर्स रहे सेठ मनसाराम, जिन्होंने देहरादून में कई इमारतों का निर्माण किया उसमें से कनॉट प्लेस भी एक है. इस ऐतिहासिक इमारत को बनाने का सपना, सेठ मनसाराम ने दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस की बिल्डिंगों की डिजायन से प्रभावित होकर तैयार किया था. जिसके लिए मनसाराम ने बॉम्बे से आर्किटेक को बुलाया था, और इसके निर्माण के लिए सेठ मनसाराम ने भारत इन्स्योरेन्स से एक लाख 25 हजार रूपये लोन लिया था. 1930 से 40 के दशक में देहरादून की ये पहली इमारत थी, जिसको तीन मंजिला तैयार किया गया था. इसे पकिस्तान से आने वाले लोगों के लिए बनाया गया था, ताकि वे यहां आकर अपना बिजनेस यहां कर सकें.

 

 

 

 

 

इतिहासकार ने की बिल्डिंग बचाने की अपील

वहीं इतिहासकार लोकेश आहरी भी बताते हैं कि ये इमारत एक ऐतिहासिक धरोहर है और राज्य सरकार को इस घरोहर को बचाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे कई दशकों का इतिहास बचा रहे, और मनसाराम जैसे लोगों की याद भी दिलाता रहे. जिसके लिए इस बिल्डिंग का रेट्रोफिटिंग करवाना चाहिए. पहले 138 साल पुराना डाक बंगला और अब करीब 85 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत को ध्वस्त करने की तैयारी चल रही है.

 

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