February 11, 2025

Ajayshri Times

सामाजिक सरोकारों की एक पहल

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ज़िंदगी जीने का सलीका..

ज़िंदगी जीने का सलीका, शायद हमें आता नही,
हम आज को आज ही, खुशहाल में जी लेते हैं।
दिन हो चाहे रात हो, या धूप, सर्द, बरसात हो,
हम मस्त मौले हर घड़ी, हर हाल में जी लेते हैं।।

अखबार तो पढ़ते होंगे, आप सुबह शाम साहब,
देखते भी होंगे कि लोग, मुहाल में जी लेते है।
कल का क्या पता उसमे, कोई खबर अपनी छपे,
इसीलिये वक़्त के हर, जंजाल में जी लेते हैं।।

  • उम्र न हमारी देखिये, ऐसे निगाहों से तोल कर,
    हम ताउम्र इतिहासों के, मिसाल में जी लेते हैं।
    चिद्रूप ज़िंदगी छोटी मगर, ख़ुशगवार होनी चाहिए,
    वरना आजीवन गुलाम भी, मलाल में जी लेते हैं।।
    ©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
    (सर्वाधिकार सुरक्षित १७/०२/२०२२)
    #चिद्रूप #chidrup #chidrup4u #चिद्रूप_की_कविताएं
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