सेवी लेखक नरेंद्र कठैत ही गढ़वाली भाषा को इस तरह का चन्द्रहार सुशोभित कर सकते हैं
उत्तराखण्ड में जितने उपक्रम भाषा संस्कृति में होते हैं गढ़वाल सभा /आकदमी /धाद/ मेला /कौथिग/ संस्था इस सभी तामझामो से अलग एक अलग राह में निकला एक साहित्य सेवी जो गढवाली भाषा उत्तराखंड की भाषा लोकभाषा अभियानों कार्यक्रमो से अलग एक ऐसी शख्सियत जो इस भीड़ में कहीं नही दिखता पर दिन रात साहित्य साधना में तल्लीन पर जिनकी हिंदी/ गढवाली में अब तक 23 से अधिक पुस्तक प्रकाशित कर चुका हो और जिनमे 20 पुस्तकें सिर्फ और सिर्फ गढवाली भाषा की हों। और जो 21 वीं सदी श्रेष्ठ व्यंग्यकारो संकलन में स्थान प्राप्त कर चुका हो । जिसकी हर पुस्तक किसी विमोचन/ लोकापर्ण कार्यक्रमों से भी परहेज कर सीधे पाठकों हाथों पुस्तक पहुंचाने रिवाज गढ़ा हो ऐसी साहित्य सेवी लेखक नरेंद्र कठैत ही गढ़वाली भाषा को इस तरह का चन्द्रहार सुशोभित कर सकते हैं
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