बैसाखी का अर्थ वैशाख माह का त्यौहार है।

यह वैशाख सौर मास का प्रथम दिन होता है। बैसाखी वैशाखी का ही अपभ्रंश है।इस दिन गंगा नदी में स्नान का बहुत महत्व है। हरिद्वार और ऋषिकेश में बैसाखी पर्व पर भारी मेला लगता है] बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है । इस कारण इस दिन को मेष संक्रान्ति भी कहते हैइसी पर्व को विषुवत संक्रान्ति भी कहा जाता है। बैसाखी पारम्परिक रूप से प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह त्योहार हिन्दुओं, बौद्ध और सिखों के लिए महत्वपूर्ण है। वैशाख के पहले दिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नव वर्ष के त्यौहार जैसे जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, बोहाग बिहू, विशु, पुथण्डु मनाये जाते हैं।
वैसाखी का पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। दरअसल, इन दिन नई फसल कट कर तैयार होती है। सिख समुदाय में इस पर्व के विशेष महत्व है। लेकिन, क्यों आप जानते हैं इस दिन ही खालसा पंथ की स्थापना की गई थी। आइए जानते हैं कैसा हुई खालसा पंथ की स्थापना क्या है खालसा पंथ।
बैसाखी सिख धर्म का विशेष महत्व है। इस साल बैसाखी का पर्व 14 अप्रैल यानी आज शुक्रवार को है। बैसाखी को देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। जैसे बंगाल में नबा वर्ष, केरल में इसे पूरम विशु और असम में बिहू के नाम से जाना जाता है। सिख समुदाय के लोग भी बैसाखी को नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। बैसाखी का पर्व सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं है। बल्कि, सिख समुदाय के जातक इस दिन को सिखों के 10वें गुरु गोविंद जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना के रूप में मनाते हैं। आइए जानते हैं कब और कैसे हुई थी खालसा पंथ की स्थापना।
गुरु गोविंद जी सिखों के दसवें गुरु थे। उन्होंने 1699 में बैसाखी के पर्व के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख समुदाय के लिए यह दिन बहुत ही खास है। इस दिन ही गुरु गोविंद सिंह जी ने पंज प्यारों को अमृत पान कराया था। आइए जानते हैं कैसा हुई खालसा पंथ की स्थापना।
खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य
1699 में ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने वैशाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। खालसा पंथ में युवाओं को अस्त्र शस्त्र चलाने सिखाए जाते हैं। खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य था की धर्म की स्थापना की जाए, मानव कल्याण और सुरक्षा है।
कौन थे पंज प्यारे
सिखों के गुरु तेग बहादुर जब शहीद हो गए थे। उस वक्त गुरप गोविंद जी की आयु महज पंद्रह वर्ष थी। इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया था। इसके बाद सिख समुदाय की एक सभा बुलाई गई थी। इस सभा में गुरु गोविंद सिंह जी ने पूछा की क्यों कोई है जो अपने सिर का बलिदान कर सके। भीड़ में से एक हाथ सामने आया जिन्होंने अपना हाथ खड़ा किया वह थे दया सिंह जी। इसके बाद गुरु गोविंद सिंह जी उन्हें लेकर गए और जब वह सामने आए तो उनकी तलवार पर खून लगा हुआ था।इसके बाद धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह और साहिब सिंह ने भी अपना सिर कलम करा लिया। कुछ समय बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ठीक ठाक बाहर आ गए। इस घटना के बाद से सिख धर्म के हर पर्व की जिम्मेदारी पंज प्यारों को सौंपी गई। गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी के आगे पंज प्यारों को स्थान दिया गया है।
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