विनम्र श्रद्धांजलि!
नैतिकता की कसौटी पर खरी, अद्भुत आंदोलनकारी : सुन्दरी नेगी!
नैतिकता की कसौटी पर कौन खरा है और कौन नहीं? ईमानदारी से यदि ढूंढना शुरू करें तो न किसी खरे को खरा मिलेगा और न किसी खरी को खरी। लेकिन यदि नैतिकता की परवाह न हो तो हर कोई गर्व से कहेगा- मैं भी! मैं भी! इन्ही शब्दों के मध्य इस आलेख से जुड़ा एक सवाल यह भी है कि- कौन है उत्तराखंडी? निश्चित रूप से आप भी हैं और मैं भी। लेकिन अगर ये प्रश्न उठे कि- कौन कौन हैं उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी? तब भी अंतिम छोर तक हामी भरने की एक होड़ सी दिखेगी। खैर, इसमें कोई शंका है भी नहीं क्योंकि कुछ न कुछ योगदान तो हर किसी का रहा ही। और- इसमें भी सत्यता है कि जिसने हाथ उठाया देर सबेर उसको यथा योग्य मिला भी। इसलिए राज्य गठन के दो दशक बाद भी यह कड़ी टूटती नहीं दिखती। किंतु – इसी जनांदोलन की भाव भूमि में कुछ ऐसे भी रहे जिनकी भूमिका महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी रही । लेकिन राज्य गठन के बाद भी उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि – मैं भी हूं आंदोलनकारी!! हमारे बीच ऐसी ही एक महान विभूति रही हैं- सुन्दरी नेगी!

कौन थी ये सुन्दरी नेगी? किसी सूची मैं यह नाम अंकित है या नहीं- कह नहीं सकता जी! लेकिन
इस कलमकार को भी यह जानकारी नहीं मिल पाती अगर स्वतंत्र पत्रकार दिवंगत ललित मोहन कोठियाल की पुस्तक ‘संघर्ष नामा एक राज्य आंदोलनकारी का’ आकार न लेती। यूं तो यह पुस्तक राज्य आंदोलनकारी बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा के जीवन दर्शन को उभार कर सामने लाती है। किंतु इसी पुस्तक में नाम उभर कर सामने आया – सुन्दरी नेगी!
ललित भाई ने लिखा- ‘उत्तराखंड राज्य आंदोलन का विचार सबसे पहले दिल्ली में पैदा हुआ।….इसके लिए पहला प्रयास उत्तराखंड राज्य परिषद ने किया जिसके अध्यक्ष एडवोकेट राम प्रताप नौटियाल थे। दिल्ली में कुछ लोगों की गिरफ्तारी व रिहाई के तुरंत बाद सेन्टर मार्केट ,लोधी रोड , दिल्ली में दिसंबर 1973 में राज्य परिषद ने द्वि- दिवसीय बैठक आहूत की।….इसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया कि गढ़वाल और कुमाऊं कमिश्नरी में इसकी दस्तक हो और इसके लिए वहां पर भूख हड़ताल,धरना प्रदर्शन आदि किया जाये। इस प्रस्ताव को राम प्रताप नौटियाल ने रखा जिसका सबने अनुमोदन किया।
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कुमाऊं के मजदूर नेता प्रताप सिंह बिष्ट व एक महिला कुमाऊं कमिश्नरी में बैठेंगे दो व्यक्ति गढ़वाल मंडल के मुख्यालय पौड़ी में बैठेंगे। … पुरुष प्रतिनिधि के रूप में गढ़वाल से नवयुवक मथुरा प्रसाद बमराड़ा का नाम सामने आया, किंतु किसी महिला का नाम तय नहीं हो पा रहा था।आखिर दिल्ली डाक विभाग में तैनात श्री गोविन्द सिंह नेगी की पत्नी श्रीमती सुन्दरी नेगी का नाम तय हुआ। इस अनशन कार्यक्रम को पौड़ी की जमीन पर उतारने के लिए लगभग दो दर्जन लोगों ने उत्तराखंड राज्य परिषद के बैनर तले दिल्ली से पौड़ी के लिए आना तय किया।
… निर्धारित समय व तिथि 10 जनवरी , 1974 की सुबह 11 बजे श्रीमती सुन्दरी नेगी व मथुरा प्रसाद बमराड़ा ने अपना आमरण अनशन जिला कलेक्ट्रेट पर आरंभ कर दिया। इस भूख हड़ताल को शुरू में पहले कोई सहयोग नहीं मिला किन्तु जैसे-जैसे जैसे दिन गुजरते गये जनता समर्थन में आने लगी। छात्र संघ ने इसे अपना समर्थन दिया और इस अनशन के समर्थन में व्यापार प्रतिष्ठान बंद कराने में मदद की। …. शीतकाल का समय होने से उस समय पौड़ी में भारी बर्फबारी हुई। ऐसा होने पर निकटवर्ती पौड़ी,च्वींचा,बैंजवाड़ी दूसरे 10 -15 गांवों की महिलाएं यह देखने आती कि यह लोग इस बर्फवारी में भी डी.एम.कार्यालय के सामने अनशन में क्यों बैठे हैं?….
हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री बने थे और उनके संज्ञान में यह बात आ चुकी थी कि दिल्ली से आकर दो व्यक्ति उत्तराखंड राज्य बनाने हेतु आमरण अनशन करने पौड़ी मुख्यालय में बैठे हैं। प्रशासन भी इस अचानक अनशन से परेशान था।… अनशन से सुन्दरी नेगी का स्वास्थ्य गिरने लगा था।…. इसलिए भूख हड़ताल पर बैठे लोगों की खराब हालत को देख प्रशासन व जनता ने बीच का रास्ता निकालने की पहल की। पौड़ी के प्रबुद्ध नागरिकों ने जिसमें प्रमुख रूप से कांग्रेस नेता रामदयाल सिंह पटवाल, गोपाल सिंह रावत,संघ प्रचारक गोविंद लाल ढींगरा व व्यापार संघ के सदस्यों ने श्रीमती सुन्दरी नेगी व बाबा बमराड़ा से पौड़ी के नागरिकों की ओर से अनशन समाप्त करने का आग्रह करते हुए आश्वासन दिया कि उनके अनशन से इस आंदोलन का पहाड़ में भी श्रीगणेश हो गया है और सब लोग आंदोलन को जन जन तक पहुंचायेंगे। इसके बाद पौड़ी की जनता के सामने आयुक्त सिंघा एवं जिलाधीश हेमेंद्र कुमार के हाथों जूस पीकर अनशनकारियों ने 20 जनवरी ,74 को यह लम्बी भूख हड़ताल समाप्त की।’ पुस्तक में ललित भाई ने पाठकों के सुलभ संदर्भ हेतु तत्कालीन समाचार पत्रों की कुछ कतरनों की फोटो भी चस्पा की हैं।
‘हलंत’ के जुलाई 2016 के अंक में छपी ‘संघर्षनामा’ पुस्तक की समीक्षा करते हुए इस कलमकार ने लिखा है कि ‘नारीशक्ति को भी कोठियाल जी ने भरपूर सम्मान दिया है, वो बाबा के साथ चाहे संघर्षशील धर्मपत्नी मुन्नी देवी के रूप में आजीवन खड़ी रही हो, श्रीमती सुन्दरी नेगी के रूप में जुझारू महिला के रूप में बाबा के साथ अलग उत्तराखंड राज्य के लिए अनशन पर बैठी हो या धर्म पत्नी की मृत्यु के बाद दो पुत्रियों के रूप में पारिवारिक जिम्मेवारियों का निर्वहन करती दिखीं हों।’ अस्तु ये प्रश्न जेहन में तब भी कौंधा था कि – श्रीमती सुन्दरी नेगी कहां होंगी? ललित जी से इस संबंध में चर्चा भी हुई थी। तब ललित जी ने कहा था कि- ‘आप दिल्ली में कहीं हैं। सुना है रखूण गांव, विकास क्षेत्र कोट, पौड़ी से भी उनका संबंध है।’ तब- डायरी के पन्नों में उनका एवं यही पता अंकित कर भविष्य में खोज खबर के लिए छोड़ दिया था। इस बीच ललित जी भी न रहे!
लम्बे अंतराल के बीच – दो माह पूर्व डायरी के पृष्ठ उलटते पलटते उक्त पृष्ठ पर नजर टिकते ही तुरंत रखूण गांव के प्रधान पति से जानकारी चाही। तात्कालिक कोई सूचना नहीं मिली। – कुछ दिन बाद पुनः सम्पर्क साधने पर उन्होंने साफ कहा कि हमारे गांव के दस्तावेजों में इस नाम की कोई महिला है ही नहीं। क्योंकि सुन्दरी नेगी के दिल्ली प्रवास की जानकारी थी इसलिए प्रधान पति से गांव के दिल्ली में निवास करने वाले किसी भी व्यक्ति का नम्बर देने को कहा। और इस प्रकार – रखूण गांव के प्रधान पति के सहयोग से ही कुछ दिन बाद दिल्ली से दूरभाष पर सुनाई दिया- ‘ कठैत जी मैं नरेन्द्र सिंह गुसाईं बोल रहा हूं। रखूण से फोन आया है। सुना है आप दीदी के संदर्भ में जानकारी चाहते हैं?’
उत्तर दिया- जी! बिल्कुल। हार्दिक इच्छा है। सुन्दरी जी कहां है? क्या उनसे संपर्क हो सकता है?
उन्होंने कहा- ‘ कठैत जी! दीदी तो अब न रही। 24 मई 2018 को रोहिणी में दीदी ने अंतिम सांस ली। उनसे पहले जीजा जी भी चल बसे थे। थोड़ा बहुत जानकारी और ये है कि रछुली गांव दीदी की ससुराल थी। मैं दीदी के साथ ही पला बढ़ा हूं। दीदी दसवीं तक पढ़ी थी। दीदी की पांच पुत्रियां-रेखा,रेनू,रानी,रोमा,नीतू हैं। इनमें से चार दिल्ली में और एक देहरादून में है। दीदी से संबंधित कोई दस्तावेज सुरक्षित है या नहीं, उनकी पुत्रियां ही सही जानकारी दे सकती हैं। आपको उनकी पुत्रियों के सम्पर्क नम्बर दे रहा हूं। ‘
उनकी पुत्री नीतू से ही आगे दूरभाष पर ज्ञात हुआ की -‘ घर पर कई राजनीतिज्ञों, सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए व्यक्तियों की आवभगत होती थी। घर का एक कमरा इन्हीं मेहमानों के लिए ही सुरक्षित था। स्वामी मनमन्थन के देहावसान पर मां के मुंह से सुना था कि -स्वामी जी नहीं रहे ! ये अच्छा नहीं हुआ।’ यह भी कि- वह तमाम प्राप्त पत्रों को पढ़ती, उनके उत्तर भी देती देखी गई। लेकिन हमसे कभी चर्चा नहीं की । शायद इसीलिए हम मां से जुड़ा हुआ कोई भी दस्तावेज सुरक्षित नहीं रख पाये।’
इस कलमकार ने भी कोठियाल जी के शब्दों को ही थोड़ा सा और विस्तार भर दिया है । अभी भी सुन्दरी नेगी के अविस्मरणीय योगदान पर और अधिक शोध की आवश्यकता है। लेकिन- इसे विडंबना ही कह सकते हैं कि राज्य गठन के बाद भी श्रीमती सुन्दरी नेगी किसी भी परिदृश्य में नहीं रही। न सुन्दरी नेगी ने अपने योगदान की कहीं चर्चा ही की। न ही आंदोलनकारी के तौर पर कभी मुखर हुई। न ही उन्होंने व्यवस्था के पास मदद के लिए कोई संदेश या प्रार्थना भेजी। और- गुमनामी में ही चुपचाप इस संसार से कूच कर गई।
किंतु- उत्तराखंड आंदोलन से जुड़ी हुई 10 जनवरी 1974ं से 20 जनवरी 1974 की तारीख गवाह हैं आपके नैतिक योगदान एवं कर्तव्य बोध की – जो आज भी अमिट हैं, कदापि भुलाई नहीं जा सकती।
देवभूमि की इस माटी से आपको विनम्र श्रद्धांजलि! !
आलेख नरेंद्र कठैत
Nani ji was a woman of self respect and love.
She was the mother of my mother in law. I have heard many stories of her love, struggle, fight for justice for utrakhand.
We love her and always cherish what she gave us.
मान्यवर kathait जी,धन्य हैं आप और आपकी अन्वेशी पत्रकारिता, ललित जी के प्रयास के लिए। हजारों एसे ही आन्दोलन कारी यूँ ही गुमनामी में रह गये,जो वास्तविक सम्मान के हकदार थे।
I am feeling very proud that my nani was doing great job for our state. Her strong determination and leadership shown the will power of great women.
Tribute to my nani ji
• nani ji you will always be in our heart your indelible impression cannot leave our heart..
•You also did hunger strike for 10 days for Uttarakhand.Your sacrifice will not go in vain.
•🙏 Thank you so much, Narendra Kathait uncle ji for publishing my maternal grandmother’s biography!
• I am proud to be your granddaughter.
Your lovely grandmother naisha Singh
I thanked you Mr Lalit Mohan Ji for publishing tremendous life achivement for my Nani Late SUNDRI NEGI
Little tribute to my treasured Granny
She was one special lady and the loss of her is felt deeply by many even though she lived a full life proudly. She was amazing bold and beautiful lady I ever met in my life. Despite she done a tremendous achievements in her life she was very ground to earth. She played a big part in everyone’s life to make our life meaningful.
Love you Nani you are truly was special ,queen of hearts ! you may have passed on but your memories would always live on within us.
Thank you for your sacrifices your care and concern you done for us and for your community.
Proud of My loving Nani
Love you so much
I will always remember my grandmother because she was beautiful, loving, caring and amazing person in my life. She was very caring and always had a welcoming home for us. I will always cherish all the memories i had with my grandma. She raised me to be a better person. I am very proud that she was my nani. I will always miss her in my life. I love u nani
I thanked you Mr Narendra kathat Ji for publishing tremendous life achivement for my Nani Late SUNDRI NEGI
Little tribute to my treasured Granny
She was one special lady and the loss of her is felt deeply by many even though she lived a full life proudly. She was amazing bold and beautiful lady I ever met in my life. Despite she done a tremendous achievements in her life she was very ground to earth. She played a big part in everyone’s life to make our life meaningful.
Love you Nani you are truly was special ,queen of hearts ! you may have passed on but your memories would always live on within us.
Thank you for your sacrifices your care and concern you done for us and for your community.
Proud of My loving Nani
Love you so much